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उसका देश, हाव-भाव रूप व्यवहार से उसका स्नेह और भोजन की मात्रा तथा शैली से उसकी शारीरिक क्षमता का ज्ञान हो जाता है।
किसको कहाँ जोड़ें जुंजेह सुउले पुत्तिं, पुत्तं विज्जासु जुंजह।
जुंजह वसणे सत्तुं, मित्तं धम्मे य जुंजह॥125॥ अन्वयार्थ-(पुत्तिं सुउले जुंजेह) पुत्री को सुकुल में जोड़ो (पुत्तं विज्जासु जुंजह) पुत्र को विद्या में जोड़ो (वसणे जुंजहे सत्तुं) शत्रु को व्यसनों में लगा दो (य) और (मित्तं धम्मे जुंजहे) मित्र को धर्म में लगाओ।
भावार्थ-समझदार गृहस्थों को अपनी पुत्री धार्मिक आचरण वाले सुकुल में देनी चाहिए, पुत्र को अच्छी विद्या के अध्ययन में लगाना चाहिए, शत्रु से लड़ने की बजाय उसे कोई खोटा व्यसन लगा देना चाहिए जिससे वह खुद ही बर्बाद हो जाएगा, तथा मित्र को धर्मशास्त्र में लगाना चाहिए जिससे उसका जीवन सुखशान्तिमय हो जाएगा।
किसको क्या नहीं अखरता किं हि भारो समत्थाणं, किं दूरं ववसाइणं।
किं विदेसो य विजाणं, को परो पियवादिणं॥126॥ अन्वयार्थ-(हि) वस्तुतः (समत्थाणं) समर्थ के लिए (किं हि भारो) भार क्या है (ववसाइणं) व्यवसायी के लिए (किं दूरं) दूर क्या है (विज्जाणं) विद्वान के लिए (किं विदेसो) विदेश क्या है (य) और (पियवादिणं) प्रियवादियों को (को परो) पर कौन है।
भावार्थ-समर्थ मनुष्यों के लिए भार क्या है? निरन्तर उद्यम करने वाले व्यक्ति के लिए दूर क्या है? शास्त्रों में पारंगत, देश-काल-परिस्थितियों को जानने वाले विद्वान के लिए विदेश क्या चीज है? कुछ भी नहीं। और प्रिय वचन बोलने वाले के लिए दूसरा (पर) कौन है? कोई भी नहीं। वस्तुतः ये सभी अपने-अपने कार्यों को साधने में पारंगत होते हैं।
वही जीवित रहता है उवसग्गे य आतंके, दुब्भिक्खे य भयावहे।
असाहुजण-संसग्गे, पलायदे स जीवदि ॥127॥ अन्वयार्थ-(भयावहे) भयंकर (उवसग्गे) उपसर्ग के आने पर (आतंके) आतंक के होने पर (दुब्भिक्खे) दुर्भिक्ष के पड़ने पर (य) और (असाहुजण-संसग्गे)
172 :: सुनील प्राकृत समग्र