________________
अन्वयार्थ-(मेहहीणो) मेघ रहित (देसो) देश (हदो) नष्ट हो जाता है (पुत्तहीणं हदं धणं) पुत्रहीन का धन नष्ट हो जाता है (विज्जाहीणं हदं-रूवं) विद्याहीन का रूपवान होना बेकार है [तथा] (हदो देहो अचारिदो) बिना आचरण के शरीर नष्ट के समान है।
भावार्थ-जिन देशों में बहुत समय तक पानी नहीं गिरता वे देश अकाल पड़ने से नष्ट हुए के समान हैं, पुत्रहीन व्यक्ति का धन भी नष्ट हुए के समान है, विद्या-ज्ञानरहित मनुष्य का सुन्दर रूप बेकार है और अच्छे आचरण अर्थात् व्रतनियमों से रहित शरीर नष्ट के समान ही है।
इनके प्रारंभ में सुखभाषित होता है अहियारो य गब्भो य, रिणं च साण-मेहुणं।
सुहं भासंति आरंभे, णिग्गमे दुक्खमेव हि॥117 ।। अन्वयार्थ-(अहियारो य गब्भो य रिणं च साण-मेहणं) अधिकार, गर्भ, ऋण और श्वान-मैथुन [इनके] (आरंभे) प्रारम्भ में (सुहं भासंति) सुख मालूम पड़ता है (णिग्गमे) निर्गम के समय [ये] (दुक्खमेव हि) दुःखरूप ही है।
भावार्थ-अधिकार प्राप्त होते समय बहुत अच्छा लगता है, अपने आप पर गर्व महसूस होता है, किन्तु जब छूटता है तब दुःख होता है। गर्भ जब धारण किया जाता है तब अच्छा लगता हैं, किन्तु प्रसूति के समय महान दुख होता है। ऋण-कर्ज लेते समय अच्छा मालूम पड़ता है किन्तु जब चुकाने (देने) का समय आता है तब बड़ा कष्ट होता है। ऐसे ही जब कुत्ता मैथुन सेवन करता है तब अपने को सुखी मानता है किन्तु तुरन्त ही कष्ट महसूस करने लगता है। कहने का तात्पर्य है कि ये कार्य शुरू में अच्छे मालूम पड़ते हैं पर कालान्तर में दुःख-दायक ही हैं, अतः बुद्धिमानों को इनसे बचना चाहिए।
ये मृत्यु के कारण हैं दुट्ठा णारी सढं मित्तं, भिच्चो उत्तर-दायगो।
ससप्पे य गिहे वासो, मिच्चूहेदू ण संसओ॥118॥ अन्वयार्थ-(दुट्ठा णारी) दुष्टा स्त्री, (सढं मित्तं) मूर्ख मित्र (उत्तर दायगो भिच्चो) उत्तर देने वाला भृत्य (य) और (ससप्पे गिहे वासो) सर्प सहित घर में निवास (मिच्चू-हेदू ण संसओ) मृत्यु हेतु हैं इसमें संशय नहीं करना चाहिए ॥58॥
भावार्थ-खोटे स्वभाव वाली क्रोधमुखी दुष्टा स्त्री, मूर्ख मित्र, उत्तर देने वाला नौकर और सर्प जिस घर में रहता हो उसमें निवास करना; ये चार निश्चित ही मृत्यु के कारण हैं। इनसे बचने का निरन्तर प्रयास करो।
लोग-णीदी :: 169