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अन्वयार्थ-(कोवि उवाओ ण विज्जदे) कोई उपाय नही है (णो भूदो) न भूत में था [और](णो भविस्सदि) न भविष्य में होगा(जेण) जिससे (सदा) सदा (जीवाणं हिंसगं) जीवों का घात करने वाले (कालो) काल को (रुधिज्जइ) रोका जा सके।
भावार्थ-जो यमराज अथवा मृत्युरूपी काल (शत्रु, समय) जीवों को मारता हुआ प्रवर्त रहा है, वह अनादि काल से ऐसा कर रहा है, किन्तु आज तक कोई भी ऐसा उपाय हाथ नहीं लगा जिसके द्वारा उसे रोका जा सके। न तो भूतकाल में उसका निवारण करना सम्भव था, न वर्तमान में है और न भविष्य में होगा। काल का निवारण तो असम्भव है, पर यदि जीव अपनी आत्मा को विशुद्ध कर लें तो वह जन्म-मरण के फन्दे से जरूर छूट सकता है।
अन्त में कोई काम नहीं आया णो मादा णो पिदा बंधू, णो पुत्ता ण य भारिया।
मिच्चुकाले पजादम्मि, कम्ममेव हि गच्छदि ॥82॥ अन्वयार्थ-(मिच्चुकाले पजादम्मि) मृत्युकाल के आने पर (कम्ममेव हि) कर्म ही (गच्छदि) [साथ] जाते हैं (णो मादा णो पिदा बंधू णो पुत्ता ण य भारिया) न माता, न पिता, न बन्धुजन, न पुत्र और न पत्नी।
भावार्थ-मरणकाल के आने पर अर्थात् मृत्यु होने पर माता-पिता, भाईबन्धु, पुत्र-पुत्रियाँ, पत्नी और रिश्तेदार कोई भी साथ नहीं जाते हैं; वस्तुतः एक स्वयं के द्वारा अर्जित किए गए पुण्य और पाप-कर्म ही साथ जाते हैं, अन्य कुछ भी नहीं।
धर्म निष्फल नहीं होता जत्थ कामत्थ-उज्जोया, किदा वि णिप्फला हवे।
तत्थ धम्म-समारंभो, संकप्पो णो हि णिप्फलो॥83॥ अन्वयार्थ-(जत्थ) जहाँ (कामत्थ-उज्जोया) काम-अर्थ का उद्योग (किदा वि) किया हुआ भी (णिप्फला) निष्फल (हवे) हो जाता है (तत्थ) वहाँ (धम्मसमारंभो) धर्म का समारम्भ (संकप्पो) संकल्प (हि) निश्चयतः (णिप्फलं णो) निष्फल नहीं होता है।
भावार्थ-लोक में यह आए दिन देखा जाता है कि काम अर्थात् विषयवासनाओं तथा धन प्राप्ति के सन्दर्भ में किया गया महान उद्योग भी मृत्यु हो जाने से, शरीर रोगी होने से, घर नष्ट हो जाने से, छापा पड़ जाने से निष्फल हो जाता है; किन्तु किए गए धर्म-कार्य और व्रत-नियम के संकल्प कभी भी निष्फल नहीं होते।
लोग-णीदी :: 157