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पुरुलियाए समाही
50 संघे विराग-परिपुण्ण-पसंत चंदं आरोग्ग वड्डण-सुसेव-समग्ग-णेमी। सम्म समे पुरुलियाइ समाहि कज्जं
माणं च आण-अवमाण सहंत कुव्वे॥5॥ संघ में विराग परिपूर्ण प्रशान्त चन्द्रसागर के प्रति आरोग्य लाभ सुसेवा आदि का सभी उत्तरदायित्व लेकर नेमिसागर क्षुल्लक विधिवत पुरुलिया नगर में समाधिकार्य के सहभागी बनते हैं। मान, सम्मान एवं अपमान सहते हुए सभी साधु क्रियाओं में सहभागी बनते हैं।
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बंगाल-खेत्त-पुरवासि-जुवा अभदं कुव्वेति संतिपरसाद-इणं च सामं। हिंसाइ रोह-सव-अद्ध पजल्लमाणं
तं ईसरे पजलएंति विहिं च सम्मं 151॥ बंगाल क्षेत्र के पुरवासी युवा अभद्रता करने लगे तब साहू शान्तिप्रसाद इस हिंसा को शान्त करने के उपाय करते, फिर भी अर्द्ध जले हुए शव को ईसरी में विधिवत सम्यक् रूप में जलाया जाता है।
52 तत्तो जवाहरय लाल पहाणमंती दुक्खं कुणेदि मणुजाण पसंत-हेदं। रट्ठिज्ज-रज्ज-पुलिसेहि बलेहि रक्खे
ते सव्व-सम्म-विहरंत-इधं च पत्ते ॥52॥ इससे प्रधानमन्त्री जवाहरलालजी दुःख व्यक्त करते हैं। वे मनुजों को शान्त करने के लिए राष्ट्रीय एवं राजकीय पुलिसबल से रक्षा करते। तब ईसरी में विहार करते हुए संघ आ जाता है।
53 वंदेज्ज सव्व-मुणिसंघ-सुसिद्ध-सिद्धं सम्मेद सेल उवरिं अणुगच्छमाणा। णंदेदि खुल्लग-इमो अवरा पसण्णा णं पत्त अत्थ परमत्थ-विसुद्ध-रूवं ॥3॥
78 :: सम्मदि सम्भवो