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हत्थग्ग भाग उवरिं कुणिदूण बालो णं वीराग चरणेसु विणम्म भूदो । ओमो अहं परम इट्ठ गुणो वि एसो मे मादु गाम परिवार गिहं गिहेज्ज ॥14 ॥
वह बालक हस्ताग्र भाग ऊपर करके मानो बीतराग चरणों में नत हुआ कह रहा हो-मैं ओम हूँ अभी परम इष्ट गुण वाला हूँ। मेरी मातुश्री एवं ग्राम जन परिवार के लोग गृह में रखना चाहते हैं ।
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तुं णायगो तिहुवणं च पदत्थ-सव्वं सव्वण्हु सव्व-दरिसी परमेसरो वि । सव्वाण काम खयदो अरहो वि सिद्धो दाएज्ज मे गुणसिरिं च अनंत भव्वं ॥ 15 ॥
आप त्रिभुवन के नायक हो, समस्त पदार्थ के ज्ञाता हो, सर्वज्ञ सर्वदर्शी परमेश्वर भी हो। आप कर्मक्षय से पहले अर्हत् हुए फिर कर्ममुक्त सिद्ध हुए। आप मुझे गुणरूपी भव्य अनंत गुण श्री को प्रदान करें ।
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सव्वे य भाउ भगिणीउ इधेव काले मे संगए बहुवए हरिसे अपारे ।
इटुं च मंत णवकार सुकण्ण कण्णं । पत्तेज्ज ओम सह सम्मदि सम्मभावं ॥16 ॥
सभी भाई बहिने इस मांगलिक प्रसंग पर अति हर्षित हमारे साथ हैं, वे लघु वय वाले हैं। जब इष्ट मन्त्र नवकार मन्त्र कर्णो में प्रवेश करते हैं तब मानो वह ओम, ओम के साथ सन्मति के सम्यक् भाव को प्राप्त हो रहा हो ऐसा प्रतीत हो रहा था । भाउ विजोगो
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चंद व्व कंत सिसु झुल्लय झुल्लमाणो छम्मास भूद सयलाण पियो हु बालो । हत्थेसु हत्थ भवमाण सुकील भावो भाउ तु अड्ढगय मिच्चु सिरिं च पत्तं ॥17॥
58 सम्मदि सम्भवो