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धवल-सदन (प्रसाद) में निवास करने वाला था । अपितु श्रेष्ठी प्यारेलाल का राजा बेटा शशि कान्ति की तरह सर्वप्रिय नभ और धरा पर लोगों की शान्ति वाला लाला था ।
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पंचे वि दिण्ण परिवार जणाण मज्झे गामीण णारि र समुह णंद पुव्वं । विप्पो दु पत्तगय जम्मय लग्ग जुत्तो वेरग्ग चारु चरिए चरिएज्ज एसो ॥7 ॥
पांचवें दिन परिवार जनों के मध्य नर नारियों एवं ग्रामीण जनों के सम्मुख आनंद पूर्वक आगत विप्र जैसे ही जन्म लगन युक्त होता वैसे ही वह कह उठता यह वैराग्य पूर्वक उत्तम चारित्र का आचरण करेगा ।
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पुवेण देंति मणुजा कधणे विसासो एगो हु सोम्म- मणुजो मुणएज्ज तं च । भो! सीय-राम- कुल भूसग - सोम्म - लाला तुम्हे सुज्ज पुरवाल जणा विरागी ॥8॥
पूर्व में लोग इस कथन पर विश्वास नहीं करते। यह सौम्य मनुज कहता कि भो सीताराम कुलभूषक सौम्य लाला आप लोग सुन रहे, यह विरागी पुरवाल जनों में होगा ।
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पत्तंक - पत्त लगणे विस रासि चक्के चक्केक्क- तावसि-विसी गणणे विवेचे । ओम हुमा हु वसो वसहेग चिन्ही वेणासही ण परमेट्ठिय वाचगो सो ॥१॥
इसके पत्रांक लगन में वृष राशि है चक्र में तापसी बृषि ही गणना है चैन सुख है, परन्तु प्यारेलाल की मातुश्री वृष राशि के वृषभ पर (धवलता पर ध्यान देती क्योंकि यह परमेष्ठि वाचक है।
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दिव्वे दिवे हु दसमे गण- - वेस जुत्तो मंगल णारि महुरंग सुगीद गीदे । मालं जयं च जयमालजुदं च मादुं ओमो हु ओम परमो तणयो हु लोए ॥10 ॥
56 :: सम्मदि सम्भवो