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खुल्लिगा
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- साधणा-संती, सम्मत्तमइ अज्जिए ।
सुहरस सुदा- खुल्ली, समाहित्था अहिज्जदे ॥33॥
संभव-र
क्षुल्लिंगा - संभवमती, साधनामती, सहस्रमती, सम्यक्त्वमती, सुहर्षमती, एवं श्रुतमती समाधिस्थ हो गयी ।
34
सेयंस- णिम्मला - सुभा, संदेस - धम्म सत्थिगा । सुवीर स
र-समणा खुल्ली, साहणारद - संघए ॥34॥
क्षुल्लिका श्रेयांसमती, निर्मलमती, शुभमती, सुधर्ममती, संदेशमती, स्वस्तिमती, सुवीरमती एवं श्रमणमती संघ में साधनारत हैं ।
आइरिय पदे विभूसिदा
35
सीदल - हेम-सुदधम्मो, रयण-जय- सूरिणो सिद्धंत - सुविही चंदो, जोइंद-सुज्ज - सुंदरो ॥
आचार्य शीतलसागर, आचार्य हेमसागर, आचार्य सुधर्मसागर, आचार्य रयणसागर, आचार्य जयसागर आचार्य सिद्धान्त सागर, आचार्य सुविधिसागर, आचार्य चंद्र सागर, आचार्य योगीन्द्रसागर, आचार्य सूर्यसागर एवं आचार्य सुंदरसागर तपस्वी सम्राट सन्मतिसागर के आचार्य शिष्य हैं।
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इमे सव्वे सदा झाणे, पाइगाइरियो इथे ।
चदुत्थ पट्ट- आसीणो, सुणीलो सम्मदीधरो ॥36॥
प्राकृताचार्य सुनीलसागर इस संघ परंपरा के चतुर्थ पट्टाचार्य हैं। इनके संघ में सभी साधु ज्ञान ध्यान में रत हैं ।
पंचकल्लागा
37-38
उदए खेर - दिल्लीए, पारसोला - कुसल्लए । दाहोद - टीकमे पासे, वेडियाए खमेयरे ॥37॥
सम्मदि सम्भवो :: 273