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21 22 23 समण्णव समाहित्थो, समयसागरो जगे। विज्जदे संघ मज्झिल्ले, सुहा-सुरम्य मुत्तए ॥21॥ सुदंसणत्थि सुण्णाणं, सुचरित्त-तवो अवि। सेट्ठो सुंदर-सोहग्गो, सुणील सुर भद्दए।॥22॥ सयल सायरो अत्थि, पवोहस्स समाहिए।
सूरसेण-समाहित्थो, संतसायर-सग्गये॥23॥ समाधिस्थ हुए समन्वय, समयसागर हैं। सुरम्यसागर और सुधा सागर समाधिस्थ हो गये।
सुदर्शन हैं, सुज्ञान, सुचरित्र, सुतप नहीं हैं। श्रेष्ठ, सुन्दर, सौभाग्य, सुनील, सुरकीर्ति, सुभद्र, सकलसागर विद्यमान हैं। शूरसेन, प्रबोध, संतसागर समाधिस्थ हो गये।
24, 25, 26, 27 सूर-सुर-ण हि संघे, सुपासकित्ति-सग्गए। सुउमाल-सुहो अस्थि, सुकोसिलो समाहिए ॥24॥ सुपसण्ण-सियसो त्तु सपभसिंधु समाहिए। सुसंत समणो णत्थि सुबंधोणो सुबुद्धओ॥25॥ समाहि समहित्थं च, अत्थि सम्माण वीरए। पाससायर साहू स्थि, सतार सहसारओ॥26॥ सम्मदि-सम्मदि-जुत्ता, णेगा साहु वि अज्जीओ।
सव्वे सम्मदि-आदेसं, णेदूणचरदे सदा ॥27॥ सूरसागर, सुरदेव संघ में नहीं है। सुपार्श्वकीर्ति समाधिस्थ हो गये।
सुकुमाल, सुखसागर विद्यमान हैं। सुप्रसन्न, श्रेयांस, सुकौशल समाधि सागर समीधस्थ हो गये। .
सम्मान, सुवीर, सुपार्श्व उक्त सभी आचार्य सन्मतिसागर जी का आदेश लेकर विचरण करते हैं।
एलक्कः
28 सुबोहोत्तुसमाहित्थं, सुवीर-सुलछो इधे।
समग्गसायरो गंधो, एलगो-हवदि जगे॥28॥ सुबोधसागर समाधिस्थ हो गये। सुवीर, सुलक्ष्य, समग्र, सुगंध आदि ऐलक जगत में हैं।
सम्मदि सम्भवो :: 271