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सूरी-सहे सुविहि-चंद सुनील सिंधु सुंदेर- णिच्छय - मुणीसर - संग - अज्ज । सोभग्ग-ओज्झय-दुवे समदा वि अतिथ सुण्णाण - धम्म- सुह-सेट्ट - अमोह देवो ॥11॥
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कित्ती - सुकोसल-सुणम्म- सुहस्स - सोक्खो सुण्णम्म-पास - सुमरो वि दया- पसण्णे । अत्थेव अत्थि सुउमाल मुणी विरागी सोलस्स-सोहकरणाणि विसेस राजे ॥12 ॥
सूरी : सन्मतिसागर, सुविधिसागर, चन्द्रसागर, सुनीलसागर, सुन्दरसागर एवं निश्चयसागर जैसे चन्द्रसम सौम्य आचार्य महामस्तकाभिषेक के समय उपस्थित थे । उपाध्याय: सौभाग्यसागर और उपाध्याय समतासागर भी ।
मुनि: सुज्ञानसागर, धर्मभूषण, शुभसागर, श्रेष्ठसागर, अमोघकीर्ति, अमरकीर्ति देवेन्द्रसागर, सुकौशल, सुनम्र, शुभ, सुख, सुपार्श्व, सुमर, दयासागर, प्रसन्नसागर एवं सुकुमालसागर जैसे सोलह मुनि तीर्थकर प्रकृति की सोलह भावना की शोभा के लिए यहाँ उपस्थित थे ।
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अज्जीड़ दंसण - णमा विणया सुविद्धी सुजोग अज्जि - सरणा जिण-सीदला वि । चिम्माय- चेदण - सुचिंतण - सोरभा वि सुब्बुद्धि- - वच्छ-हिदया-णयणा सुणम्मा ॥ 13 ॥
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सुणम्-दण-विसुद्ध सुणेह - भव्वा । सुप्पण - णीदिय- सुदिव्व णयासुहा वि । सुत्थी - सुकालमदि - अज्जिग-संग-संघे राजेज्ज कुंज अहिसेग महुच्छवत्थे ॥14 ॥
आर्यिका दर्शनमती, नमन, विनय, सुविधि, सुयोग, शरण, जिनवाणी, शीतलमती, चिन्मय, चेतन, चिन्तन, सुबुद्धि, सौरभमती, सुवत्सल्यमती, सुहृदयमती, नयनमती, सुनम्रमती, नूतनमती, विशुद्धमती, सुभव्यमती, सुनीतिमती, सुप्रज्ञमती, सुदिव्यमती, सुनयमती, शुभमती, स्वस्तिमती, सुस्नेहमती सुकालमती, आदि आर्यिका
सम्मदि सम्भवो :: 257