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धारी
32 ताप धारि, गंथ सार।
खेत्त चारि, वास चार ॥32॥(धारी-छंद) आचार्य श्री तो तपस्वी तप एवं ग्रन्थ के सार में रुचि लेने वाले फरवरी से जुलाई तक उदयपुर के प्रत्येक क्षेत्र में विचरण करते हुए जुलाई 6 को उदयपुर चातुर्मास के लिए स्थित हुए।
33 अज्झप्प णाण-परमागम-सुत्त-सुत्ते छक्खंड-आगम-सुदे-हु पियार-पण्णा। हं पण्ण-हीण उदयो उदएज्ज णिच्चं
सुत्ताणि पाइय पदाणि सुसिक्खएज्जा ॥33॥ यह संघ अध्यात्म ज्ञान, परमागम के सूत्र के एक रूपता वाले पं. प्यारे लाल व पंडित पन्नालाल षट्खंडागम के श्रुत में ध्यान लगाते हैं। मैं प्रज्ञाहीन उदय प्राकृत सूत्र एवं उनकी व्याख्या को खोलता और प्राकृत का अध्ययन कराता हूँ।
34 णाबंवरे हु सुखसागर साहु-रूवं केलास-मंति-पहु आरदि-भावणं च। उग्घेज्ज पिच्छिपरिवट्टगिरिज्ज-आदी
चंदो गुलाब-तयलोयय कुंतिलालो॥34॥ नवंबर 14 को एक दीक्षा हुई। वे दीक्षार्थी सुखसागर साधु बने। इसी समय समाज कल्याण मन्त्री कैलास मेघवाल आरती का लाभ लेते और आचार्य सुनीलसागर की पुस्तक प्राकृत में रचित 'भावणासारो' का विमोचन करते हैं। पिच्छी परिवर्तन पर गिरिजाव्यास, गुलाबचंद्र कटारिया, त्रिलोकपूर्विया एवं कुंतीलाल भी उपस्थित थे।
35 तक्कं जलं च तवणिट्ठ-गणिं च दंसं सेवा-अहिंस-मणुजत्त-विसेस-चिन्ता साहस्स-वे-चदु-चरे बहु-गाम-गामे
कारावलीइ उसहं च सतुंबरे ते॥35॥ तक्र (छाछ और जल) जल वाले तपनिष्ट आचार्य के सभी दर्शन करते हैं।
226 :: सम्मदि सम्भवो