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32 आरक्खि-रक्ख गुणजुत्त इणं ण जाणे साहूण णो पुलिस ठाण-वसेज्ज माणे। तेसिं च रक्खण-गदा मुणि संघ-अग्गे
याता हु यातकर मज्झ-सुवाहणं च ॥32॥ __ आरक्षी का कार्य रक्षा है, वे रक्षा गुण को जानते हुए अनजान रहते। साधुओं को पुलिस स्थान पर नहीं ले जाया जाता, फिर भी ले गये तो मान रहित उन्हें रक्षण दिया जाता है। आगे यातायात वाहन रोक लिया जाता है। कडगे पवासो
33 पुव्वे सुणेति विण्णाणु सहाइ भूदा संपत्तराय-झुणिदूर-सुणंत-सव्वे। संघो गदी वि कडगे उदए हु खंडे
पत्तेदि खारविल ठाविद गुज्झ-हत्थिं ॥33॥ जो अधिकारी पूर्व में कुछ नहीं सुन रहे थे, वे ही संपतराय की दूरभाष ध्वनि सुन कुछ नहीं बोलते। संघ खंडगिरि उदयगिरि कटक पार करते हुए खारवेल राजा द्वारा स्थापित हाथी गुफा को प्राप्त होता है।
34 तेसिं जिणाण पडिबिंबगणाण वंदे आगच्छदे हु कडगे तव झाण-लीणे। अत्थेव बंहयरि-रोगगसो हु जादि
वालुं जलं सह हु तप्प-सुपाण-सेयो॥34॥ कटक के समीप खंडगिरि-उदयगिरि की गुफाओं के जिनबिंबों की वंदना करते फिर कटक में तपध्यान में लीन हो जाते हैं। यही पर एक ब्रह्मचारी रोग ग्रस्त हो जाते, तब उन्हें गर्म पानी एवं वालुकण की उकाली दी जाती है, उससे वे स्वस्थ्य हो जाते हैं।
35 सेट्ठीजणा अणुचरा सयला हु अत्थ सेवारदा पडिदिणं कुणएंति सेवं। सड्डाणुसील गुरु संमुह-आदरं च णेएज्ज मज्ज महु चत्त-वदं च तेणं ॥35॥
120 :: सम्मदि सम्भवो