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सप्तम-सम्मदी
णील (नील 5 ।। ७ ।। 5 ।। 5 ।। 5 ।। 5 = 16 वर्ण सम्मदि-सम्मदि भासिद-भासिद णम्मिद ते सम्मदि-इच्छिद-रम्मउ अम्हउ माणस रे। सूरि-सरोवर माणस हंसउणच्चउरे
णाण-णरिंद सुदंसण-चारिद वित्तउ रे॥1॥ ये मनुज आज सन्मति, सन्मति, सन्मति कहते हुए नम्र हैं। ये सन्मति के इच्छुक अपने मानस में उन्हें ले रहे हैं। क्योंकि ये सूरि रूपी सरोवर मान सरोवर हैं तभी तो आनंद से नाच रहे हैं। ये ज्ञान रूपी नरेन्द्र, उत्तम दर्शन एवं चारित्र चित्त वाले हैं। वसंततिलका-छंद
2 तुम्हे णमोत्थु भगवं अरहं जिणिंदं। णाणंच दंसण-सुहं बल-णंत-तुम्हे। चारित्त धम्म-अणु-भूसण-सोम्म-भावं
तुम्हे णमोत्थु भुवणेग-तिलोगिणाहं ॥2॥ वे आचार्य पदारोहण महोत्सव युक्त सन्मति सागर-आचार्य सन्मति सागर भगवत् अर्हत्, जिनेन्द्र के प्रति नमोस्तु करते हैं, वे चारित्र भूषण, धर्म-भूषण, सौम्यभाव युक्त अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख एवं अनंत बल को नमन करते हैं तथा वे तीनों लोकों के त्रिलोकी नाथ को नमन करते हैं।
3 अट्ठ-कम्म-वियलं सिरि-सम्मदिं च णाणंसुधंबु-सयलं जगदीस-ईसं।
सम्मदि सम्भवो :: 111