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________________ भागमधरहरि २९ हुए ही थे कि ये समाचार मिले । तुरन्त पावन को पतित करने की योजना बनाई । यमुना माता को यह निश्चित ज्ञात हो चुका था कि उसकी शक्ति काम नहीं देगी, साथ ही सास-ससुर, स्वजन, स्नेही तया धर्मपत्नी का बल भी कोई असर नहीं करेगा । अतः राज में फरियाद की । सरकार और न्यायालय संसारी का पक्ष ही अधिक लेते हैं। सतयुग की बात जाने दीजिए, यह कलियुग की सरकार की बात है। राज्याज्ञा हेमचंद्र को गुजरात राज्य के बड़े अधिकारी की ओर से एक आज्ञापत्र मिला । उसमें लिखा था, "तुम साधु वेष त्याग कर अपने गाव चले जाओ । वहां तुम्हें गृहस्थ-जीवन बिताना है । तुम विवाहित हो, अतः अपनी पत्नी के भरण-पोषण के अतिरिक्त उसे सन्तोष देने के लिए भी जिम्मेदार हो । तुम इस फर्ज से मुक्त नहीं हो सकते । तुमने आवेश के कारण वा अन्य किसी भी कारण से दीक्षा ली हो, तो यह पत्र मिलते ही दीक्षा छोड़ दो यह राज्य का हुक्म है ।" राज्याज्ञा का उत्तर राज्य का आज्ञापत्र पढ़ कर मुनि हेमचन्द्र सोच में पड़ गये । सुनिप्रवर झवेर सागरजी ने सोचा कि यह अप्रत्याशित उपसर्ग भाया है। उपसर्ग तो आनेवाला था परन्तु जैन नगरी होते हुए भी श्रमण का पक्ष लेनेवाला कोई मौका पूत सामने नहीं आया । बिना मूठ के हथियार अनुपयोगी होता है, उसी तरह अकेले महात्मा प्रवेरसागरजी. भी क्या कर सकते थे !. ..
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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