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________________ भागभधरसरि २७ ध्याहने से पहले ही दीक्षा की बात कर रहा है । माणेकको सोचना चाहिए था कि मेरे स्वामी दीक्षा लेंगे तो मैं क्या करूँगी ? इस. में उसके पिताका क्या दोष ? जम्बुस्वामी की पत्नियोंने दीक्षा ली थी उस तरह से अब इस माणेक को भी दीक्षा लेनी चाहिए।' इन सबके के बीच यमुना माता, माणेक, ससुर और सास, माहकी ऐसी घबराहट में पड़ गये कि क्या करें और क्या न करें इसका तुरन्त निर्णय नहीं कर सके। सौराष्ट्र में संयम अंधेरी रातमें रवाना हुआ वीर हेमचन्द्र कहीं पैदल तो कहीं पाहन में सफर करता हुआ गाव, नगर, उपवनेका पार करता हुभा सौराष्ट्र की भूमि पर आ पहुँचा। पूज्य प्रवर आगमज्ञाता विद्वर्य मुनीश्वर श्री झवेरसागरजी के चरण-कमलों से पूत बनी लिंबडी नगरी में मुक्तिपुरी का अदम्य प्रवासी हेमचन्द्र आ पहुँचा । गुरुदेव श्री झवेरसागरजी महाराज के पास आकर विधिपूर्वक वंदनादि किया। अवसर देख कर पूज्यश्रीने आगन्तुकसे पूछा "महानुभाव ! किस उद्देश्य से आये हो ?" . भंते ! मैं कई महीनेसे संयमकी अभिलाषा पाल रहा हूँ। पहले भी संयम लेने के प्रयत्न किये थे परन्तु भाग्यने साथ नहीं दिया। भाज आपके चरणों की शरण में आया हूँ। कपड़वंज छोड़े आठ दिन हुए । एक मात्र अमिलाषा-एक ही तमन्ना-एक ही अरमान है कि मुझे संयम-पथ का पथिक बनाइये । गुरुदेव ! मेरा उद्धार कीजियेउद्धार कीजिये।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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