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________________ आगमधरसरि ऐसे त्यागपथ पर जाने काले पुत्र कहाँ!' उन्होंने हेमचन्द्र को निकट बुलाकर सिरपर हाथ फेरते हुए कहा-'वत्स। क्या तुम्हें मी संयम मार्ग पर चलना है ? क्या तुम्हें भी आत्मस्वरूप की लगन लगी है ! जाओ बेटा ! तुम भी अपने बड़े भाई के साथ जाओ। मैं तुम्हारे पवित्र कार्य में अवरोध बनना नहीं चाहता। तुम अपनी आत्मा का उद्धार करना और अनेक आत्माओं के उद्धारक बनना। आज जिनशासन निस्तेज होता जा रहा है। तुम इसे पुनः जगमगाता हुआ कर दो। आज शासन की दशा देखी नहीं जाती। तुम जैसे उसका उद्धार करेंगे तो मैं भी सौभाग्य समझंगा। मैं शासनोद्धारक पुत्रों का पिता माना जाऊँगा। जाओं पुत्र, तुम अपने भाई के साथ जाओ।" । रास्ते में बातचीत दोनों भाई अहमदाबाद के लिए रवाना हुए। कपडवंज में कोई नहीं जानता कि वे दोनों किस कामसे जा रहे हैं ! यमुना माता मानती थी कि मणिलाल का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वह भावहवा बदमने जा रहा है। लोगों का भी ऐसा ही खयाल था। केवल पिताजी ही सच बात जानते थे। रास्ते में बड़े भाईने हेमचन्द्र से कहा, 'भाई, यदि लुम्हारा यह सयाल है कि मैं इलाज के लिए या भावहवा बदलने अहमदाबाद जा रहा हूँ, या थोडे दिन आराम करने जा रहा हूँ तो तुम धोखे में हो। जबसे मैंने कपडवंज छोड़ा है तबसे मुझे पूर्ण शान्ति है। मैं परमात्मा के शासन की दीक्षा लेने के लिए निकला हूँ। मैं संसारकी सवामि में बकना नहीं चाहता । तुम्हें जो जंचे सेा करना । मैं अब पहस्प वेष में कपडबंब नहीं माऊँगा।'
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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