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________________ मार्गमधरसरि हुए थे। उसमें कोमलता एवं कठोरताका भी समुचित समावेश था। उसमें गजब का सत्त्व था, भय को भी उसके पास आने में भय लगता था। उसका ज्ञान दिन ब दिन बढ़ता गया, उसकी पढ़ाई देख कर शिक्षक भी विचार में पड़ जाते । वे दूसरे बालकों को इस बालक से पढ़वाते। इस तरह हेमचंद्र एक साथ विद्यार्थीपद एवं गुरुपर-दोनों पदों का उपमेोग कर रहा था। गेंद-बल्ले का खेल बाल्यावस्था तेो खेलकूदप्रिय होती ही है ! एक दिन शामको स्कूल की पढ़ाई के बाद सब लड़के मुहल्ले में गेंद और बल्ले का खेल खेल रहे थे। वे सब खेलमें इतने तल्लीन थे कि उन्हे स्थान और समयमा ध्यान ही नहीं रहा। अचानक एक लड़के के द्वारा गेंद सरकारी हीये से जा टकराया। दीये के बाहरका काच गेंदके भाघात से चूर चूर हो गया। खेलनेवाले सभी विद्यार्थी तुरन्त भाग खडे हुए, न गया धीरन की मूर्ति सा केवल एक हेमचन्द्र । थोड़ी ही देर में दीर्घकाय लाठीधारी नगररक्षक सिपाही वहा आ पहुँचा। उसने भयानक अट्टहास्य करते हुए कहा, 'क्यों रे लड़के ! इस दिवे का कांच तूने क्यों फोड़ डाला ?' नगररक्षक सिपाही तो बस हेमचन्द्र को ही अपराधी मान कर गटने फटकारने लगा, तब हेमचन्द्रने कहा, 'मैंने सरकारी दीया या उसका बाहरी आवरण तोड़ा ही नहीं है। मुझे आप से डरने की कोई जरूरत नहीं है। मेरा काई कसूर नहीं, अतः आप मेरा कुछ नहीं कर सकते।' बालकका वीरोचित और सभ्यतापूर्ण उत्तर सुनकर सिपाही हतप्रभ हो गया। उसे प्रतीत हुआ कि इस लड़केके सामने मेरी एक न
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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