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________________ इस समय श्री सिद्धाचल तीर्थ में अनेक साधु साध्वी चातुर्मास के लिए रहे हुए हैं। श्रीमान् आनन्दसागरसूरिजी उन सब को श्री भगवतीजी और प्रज्ञापना इन दोनेां महान् सूत्रों की वाचना अप्रतिम लाभ हररोज चार घंटों तक देते हैं। सुज्ञ मुनिमहाराज और कतिपय सुज्ञ साध्विया उसका अविच्छिन्न लाभ लेते हैं । श्रावक श्राविकाएँ भी जो इस अपूर्व वाचना का एवं मुनिदान आदि का लाभ लेने के लिए वहाँ चातुर्मास रह रहे हैं, वाचना सुनने बैठते हैं। श्रावक वर्ग का सूत्र-श्रवण करने का ही अधिकार होने के कारण काई श्रावक श्राविका उन सूत्रों की प्रति हाथ में रख कर पढते नहीं परन्तु एकाग्रचित्त से श्रवण करते है। उस में भी कम लाभ नहीं है। हमने भी थोडे थोड़े दिन वहाँ रह कर इस तरह अपूर्व लाभ प्राप्त किया है। हमें तो यह चौथे आरे की अथवा पाचवे आरे के प्रथम भाग की बानगी प्रतीत होती है। ऐसा प्रसंग न तो हमने देखा है न पिछले सौ वर्षों में हुआ सुना है । हम चतुर्विध संघ से यह अपूर्व लाभ लेने के लिए सविनय प्रार्थना करते हैं। - हमें प्राप्त समाचार के अनुसार पालीताना मे ये पर्व के दिन बहुत ही आनन्द-पूर्वक शासन की शोभा में अत्यधिक वृद्धि हो इस तरह अनेक प्रकार की तपस्याओं-प्रभावनाओं सहित व्यतीत हुए हैं। आचार्य श्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी ने इस चातुर्मास की वाचना पालीताने में रखी है। इस लिए बहुत से मुनिराजों और साध्वियों ने इस क्षेत्र में वास किया है। वाचना का कार्य बहुत सुचारु रूप से चल रहा है। वाचना में अभी भगवतीजी तथा पन्नवणाजी पढ़े जाते हैं। वाचना का दृश्य आकर्षक, आहादजनक, और प्राचीनकाल की स्मृति करानेवाला है। अनेक मुनि महात्मा
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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