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________________ ३६ अत्र श्री देवगुरु धर्म के प्रसाद से आनंद मंगल है, आप श्री संघ के भी आनंद मंगल की कामना करते हैं । विशेष में सविनय निवेदन है कि हमारे श्री संघ के परम पुण्योदय से प. पू. भाराध्यपाद गणधर - श्रुत - स्थविर गुम्फित भागम सिद्धान्तादि अनेक अमुद्रित ग्रंथ संशोधक, श्री जैन शासन साम्राज्य संरक्षणैक बद्धलक्ष्य, श्री तीर्थाधिराज सिद्धक्षेत्र में श्री वर्धमान जैनागम मंदिर संस्थापक, आगमोदय समिति, दे० ला ० पु० फंड इत्यादि अनेक सुधर्म संस्थाओं के संस्थापक, प्रथम शिले।त्कीर्ण- -ताम्रपत्रारूढ आगम-प्रार भक, वर्तमान श्रुत के ज्ञाता, आगम दिवाकर, आगमाद्धारक, प्रातः स्मरणीय आचार्यदेवेश श्रीमद् आनन्दसागर सुरीश्वरजी महाराज की अपूर्व भागम साहित्य सेवा तथा वीतराग प्रवचन तीर्थं भक्ति जनेतरों में सुविख्यात है । जिनके अमृतमय उपदेश सींचन से सकल संघ निरंतर पल्लवित होता ही जाता है, उन पूज्यश्री का श्री संघ पर निरुपम उपकार है । उनके उपदेश से और हम पर उपकार की स्मृतिरूप में श्री आगमोद्धारक संस्था स्थापित हुई है । तथा श्री संघ से प्राप्त आर्थिक आदि विविध अचिंतित सहयोग से अत्यल्प समय में ज्ञान, दर्शन, चारित्र के प्रतीक रूप एक. गगनचुम्बी, तीन मंजिलवाला श्री वर्धमान जैन ताम्रपत्र आगममन्दिर निमित हुआ है जिसमें एक भव्य भूमिगर्भ भाग, बीच में विशाल मूळ मंदिर और उसके ऊपर एक मंजिल है । . •
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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