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________________ आगमधरसूरि १६७ देख कर किसी को भी आश्चर्य हुए बिना न रहता। 'अभी कलकी बात है कि हम मंदिर बनवाने की बातें सुनते थे और आज तो तीन मंजिलवाला ऊँचा देवभुवन-सा साक्षात् मदिर देख रहे हैं-यह चमत्कार नहीं तो और क्या है ? बाजीपुरा में प्रतिष्ठा बाजीपुरा एक छोटासा परन्तु सुन्दर गाव है जो सूरत से पैंतीस मील पूर्व में स्थित है। श्री संघने वहाँ एक छोटासा मदिर बनाया। श्री संघ की शुभ भावना थी कि उसकी प्रतिष्ठा पूज्य आगमोद्धारकश्री के वरद हस्तों से कराई जाय। - पूज्य आगमाद्धारकश्री वृद्धावस्था के कारण दिन दिन क्षीणज घाबली हो रहे थे। अशाता वेदनीय कर्म ने शरीर में अपना काम जारी रखा था, अतः प्रतिष्ठा के प्रसंग पर जाना संभव होगा या नहीं यह प्रश्न था। बाजीपुरा के संघ ने तथा आसपास के अन्य संघांने मिल कर अनुरोध किया। श्री संघ के पुण्योदय के कारण प्रतिष्ठा के मौके पर आने के लिए पूज्य गमाद्धारकरी के द्वारा स्वीकृति सूचक 'क्षेत्र स्पशना' शब्द प्रयुक्त किया गया। सूरत से बिहार कर बारडोली पधारे। शरीर को चलना मंजूर नहीं था तो भी मनोबल-संपन्न महात्मा ने एक एक कोस का विहार शुरू किया। - बाजीपुरा संघ को इस कारण कत्यन्त हर्ष हो रहा था कि उनके गाँव के जिनमदिर की प्रतिष्ठा अनेक जिनम दिसे की प्रतिष्ठा करानेवाले बहुश्रुत, भागमाबारक पवित्र पुण्य पुरुष के हाथों होगी। विघ्नों की
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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