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________________ भागमधरसुरि ताम्रपत्र-आगममंदिर ___ सूर्यपुर ने अपनी धरती पर तानपत्र-आगममंदिर निर्माण करने का सौभाग्य पाया था-इस अदृश्य भाग्यलेख को कौन पढे। यह बात न तो ज्योतिषियों के ज्योतिष में थी, न हस्तरेखाशास्त्रियों के हस्तरेखाशास्त्र में। हा, यह बात केवलज्ञानियों के ज्ञान में तथा विशिष्ट अवधिज्ञानियों के ध्यान में थी परन्तु वे पुण्य-पुरुष आकर इस भूमि के निवासियों से कहा कहते हैं? जब सूरत की शोभा में चार चाँद लगानेवाले ताम्रपत्र आगममंदिर के नवनिर्माण का निर्णय हुआ तभी मालूम हुआ कि वह सौभाग्य सूरत के ललाट में लिखा हुआ था। पूज्य प्रवर प्रौढ़ प्रतापी भागमाद्धारकश्री ऐसे प्रवर व्यक्ति थे जिन के अणु अणु में आगम व्याप्त थे। आगम का उच्चारण ही उनका जीवन था। वे मानों आगम-सरोवर के मनोरम मोतियों का चुग चुगने वाले महापवित्र हंस थे। - कई वर्ष पहले आगमों की अमरता के विषय में विचार करते हुए इस महापुरुष ने मन ही मन यह निर्णय किया था कि अवसर भाने पर ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण, सुन्दर मरोड़दार अक्षरों में लिखा हुआ ताम्रपत्र-आगमम दिर बने तो उत्तम । वचन-सिद्धि इस समय पू० आगमाद्वारकश्री सात दशक पार कर आठवें दशक में प्रवेश कर चुके थे। सूरत में उनका चातुर्मास था। सूरत तो पू० सागरजी महाराज के नाम पर कुरबान था। पूज्यश्री ने पर्व
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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