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________________ भागमधरसूरि विलंब सहन नहीं कर सकते थे। झवेरचंदभाई और देवचंदभाई-इन दोनोंको संसार में एक दिन बिताना भी विष समान लगता था । अब तक अनेक भाग्यवान संसार की ममता त्याग कर संयम मार्ग का सुतरां स्वीकार कर पूज्य पादश्रीके चरणों में आ बसे थे। परन्तु ये दो दीक्षाएँ बंगाल में हुई जहाँ पहले कभी दीक्षा-उत्सव हुआ हो यह जानने के लिए इतिहास के पृष्ठ फिराने पडें ऐसा है; अतः कुछ विस्तृत विवरण देना समीचीन होगा। संघ का आनंद श्री अजीमगंज जैन संघ एवं राय बहादुर श्री दुधेडियाजी को यह जाम कर अत्यन्त हर्ष हुआ कि ये दोनों सज्जन दीक्षा लेने के शुभाशय से सूरत से यहाँ पूज्यपादश्री के पास आए हैं। भतः पूज्यपादश्री से विनय पूर्वक कहा-"गुरुदेव ! इन दोनों पुण्यवानों को कृपया हमारे शहर में दीक्षा दीजिए और दीक्षा का महोत्सव करने का सौभाग्य हमें प्रदान कीजिए । बंगाल में ऐसा प्रसंग मनाया गया हो इसकी जानकारी हमें नहीं हैं । पुनः कब अबसर मिलेगा से हम नहीं जान सकते । अतः गुरुदेव ! आप हम पर कृपावृष्टि कर दीक्षा-उत्सव का लाभ हमें लेने दीजिए। पूज्य भागमोद्धारजीने श्री अजीमगज जैन संघ एवं रायबहादुर श्री विजयसिंहजी की प्रार्थना स्वीकार की । _ ज्योतिषी बुलाये गये, मुहुर्त निकाला गया। दीक्षा के लिए विक्रम संवत् १९८१ भाषाढ शुक्ला पंचमी का दिन निश्चित हुआ। जेठ वदी (भाषाढ वदी) त्रयोदशी से महोत्सव का शुभारम्भ हुआ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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