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________________ आगमधरसूरि व्याख्यान हर रोज नियमित होने लगा। शैलाना नरेश भी राजकाज में से चार घडी समय निकाल कर व्याख्यान में आने लगे और पूज्यश्री जब तक शैलाना रहे तब तक नियमित अखंड लाभ लिया । . इसके अतिरिक्त अन्य समय में भी शैलाना नरेश पूज्यश्री आगम।द्धारकजी के साथ आर्य संस्कृति, राज्यधर्म, नीति धर्म, राजाका कर्तव्य, आत्मा, परभव, (पुनजन्म), पुण्य, पाप, मोक्ष, पाश्चात्य संस्कृति, जैनदर्शन वेदांत दर्शन, बौद्धदर्शन आदि अनेक विषयों पर गहन चर्चाविचारणा मी करते थे। जब शैलाना नरेश पूज्यश्रीके पास धर्मोपदेश सुनने या चर्चा के लिए आते तब उनका व्यवहार एक विनयशील शिष्य रत्न के समान होता था । धीरे धीरे वे आर्य धर्म और आर्य संस्कृति के ऐसे भक्त बन गये जैसे कि सतयुग के धर्मावतारी राजा हे।। शैलाना-नरेश का जीवन भी आदर्श बन गया। पूज्यपाद आगाद्वारक श्री के ससग से उनमें जीवदयाका अखड निर्झर बहने लगाजीवदया का प्रेम उत्तरोत्तर बढ़ते हुए उत्कृष्ट कोटि पर पहुँचा । उन्होंने अपने राज्य के सभी गांवों में 'अमारि पडह' घोषित किया । अमयदानका यह सर्वश्रेष्ठ कार्य करके शैलाना नरेश श्री दिलीपसिंहजी स्वनामधन्य हो गये, और आगमाद्धारकजी भी अद्वितीय प्रभावक आचार्य बने । ...' उस समय से आगमोद्धारकश्रीजी के नाम के पूर्व 'शैलाना-नरेशप्रतिबोधक' बिरुद जुड़ गया ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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