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________________ मघरसरि के लाले पड़े थे। पूज्य भागमाद्धारकजी ने यह प्रश्न अपने हाथमें लिया। जिस कार्य को अन्य लोग अगाध परिश्रम से भी नहीं कर सके वही पूज्य श्री के पुण्य प्रताप से अल्प प्रयास से होने लगा। लाखों रुपये इकट्ठे हुए और उचित परिमाण में सहायता दी जा सकी। पूज्यश्रीको जन-समूह में 'अनाथों के नाथ' के रूप में ख्याति मिली। फिर विहार का क्रम शुरू हुआ, सूरत में पुनर्प दार्पण हुआ। सूरत तो मानों आगमोद्वारकजी की राजधानी थी। बम्बई और सूरत बहुत बार आना जाना हुआ। फिर भी उन्हें कहीं की आसक्ति नहीं हुई। अपने साधुओं के लिए उन्हेांने ज्ञानमंदिर के बहाने मठ नहीं स्थापित किया। पूज्य श्री मालिकी के ज्ञानमंदिर बना कर शिथिलाचार को पोपने की वृत्ति के विरोधी थे। धनपति भक्तों का समूह पा कर भी वे सदा अनासक्त बने रहे। पुस्तकें और पुस्तकालय इस शासनरत्न महापुरुष के पास कई ग्रन्थ आते थे। मारवाड़ आदि से हस्तलेख लिखनेवालों तथा यतियों की ओर से कई प्रन्ध बिकने के लिए आते थे। उनमें से योग्य पुस्तकों का योग्य मूल्य धावकों से दिलवा कर पूज्य श्री. शासन परंपरा के लिए उन्हें अनासक्त भाव से रख लेते। श्वेताम्बर पक्षीय श्रावक संघ प्राचीन प्रन्यों या नये मुद्रित प्रन्थों के संग्रह तथा संरक्षण में बिल्कुल कारा है यह कहना अवास्तविक नहीं होगा। उसे सोने चादी की आँगी, हीरो के मुकुट, चादी और साने के गट्ठों की रक्षा करने में ही कुशलता हासिल है । व्यापारी जो ठहरे। आगमोद्धारक श्री ने बहुत सारे प्रत्य एकत्रित किए। इन प्रन्यों को
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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