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________________ કૈંક आगमधरसूरि इस रथयात्राका देखने के लिए राजमागों पर जनसमूहं उमड रहा था । आवासों की अट्टालिकाओं और गवाक्षों से भी लोग इस रथयात्रा को देख रहे थे । आसपास के गांवों के लोग भी देखने आए थे । शांति के सेनानी को आचार्य पद प्रदान के निमित्त आयोजित इस रथ - यात्रा में अशांति की कोई संभावना नहीं थी तो भी राज्य की ओर से अपने कर्तव्य - पालन की दृष्टि से सुरक्षा का पूरा प्रबन्ध किया गया था । शुभ घड़ी में शुरू हुई रथयात्रा अमृत घड़ी में पूर्ण हुई अतः आज भी यह यात्रा अमृत है-स्मृति में आती है । अमृत पान करने के कारण अभी भी जीवित है । पदवी-पदान सूर्य देव का रथ आकाश आनन्द प्रवाह भी बढ़ता आज परम प्रिय धर्मगुरू का पदवी देने का शुभ दिन था । लोग सूर्योदय से पहले ही उठ चुके थे। ज्यों ज्यों मार्ग पर अग्रसर होता था लोक हृदय का जा रहा था । पदवी - दान के लिए ध्वजा, पताका तेोरण आदि से सुशोभित विशाल मंडप ( शामियाना ) बनाया गया था । सुगंधित धूप तथा गुलाब जल के छिडकाव से वातावरण निर्मल सुगंधमय एवं शीतल बना हुआ था । नगरका नरनारी - वृन्द बहुमूल्य और आकर्षक वस्त्राभूषणों से सज धज कर आने लगा। थोड़े से समय में सारा मंडप मानव - समूह से भर गया । - मिथ्यात्व - तिमिर - भास्कर, तपगच्छ - गंगन - दिवाकर मुनिप्रवर श्री मुक्ति विजयजी महाराजश्री ( मूलचंदजी ) के शिष्य रत्न
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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