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________________ आगमधरमरि ७५ पूज्य महात्मा पर दिगंबर सम्प्रदाय के धर्माध लोगों ने हमला किया सेो अत्यन्त अयोग्य व्यवहार है । तदुपरान्त एक सत्यप्रिय धर्मगुरु पर जो वस्तुतः अपना कर्तव्य-पालन कर रहे थे, आरोप लगा कर जुर्मनामा दाखिल किया जो कि बिल्कुल झूठा साबित हुआ है। इन्होंने इस तरह न्यायालय को झूठे आक्षेप पर कार्यवाही करने को कह कर गलत राह दिखाने का निदनीय कृत्य किया है। ___इस मुकदमे की कार्रवाई में वादी, प्रतिवादी, और दोनों पक्षे के गवाह सभी झूठे हैं। सब वास्तविकता -को-छिपा रहे थे। केवल इन महात्माजीश्री आनन्द सागरजी महाराज ने सत्य हकीकत प्रस्तुत की है और हमने इनके वचन को सत्य माना है। पुनः एक बार हम निश्चित तौर पर कहते हैं कि एक महात्मा पुरुष को मुख्य आरोपी के रूप में जो पेश किया वह भी अत्यन्त अनुचित कृत्य है । ये महात्मा सर्वथा सम्पूर्णतः मिषि हैं।" आनन्द! आनन्द !! आनन्द !!! यह नेक निर्णय सुनकर अन्तरिक्षजी के प्रांगण में उमड़ा हुआ जन-समुदाय आनन्द-विभोर हो गया। जगह जगह के जैन-संघ भातुरता पूर्वक निर्णय की राह देख रहे थे। उन्हें तार-टेलिफेान से खबर दी गई। समाचार पत्रों में भी ये समाचार बड़े अक्षरे में प्रकाशित हुए । सब ओर आनंद ही आनद छा गया । पूज्यश्री के अप्रतिम गुणों के कारण अधिकारी वर्ग के अग्रणी उनकी ओर आकर्षित हुए, कई उनके भक्त हो गये । . इस प्रसंगने पूज्य भागमाद्धारकरी की सच्ची साधुता और विद्वता को बाहर प्रकट कर दिखाया ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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