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________________ आगमधरसूरि प्रकाश में कौन लाए ! दूसरी ओर मुद्रण-पद्धति का प्रारंभ हो चुका था। वास्तव में मुद्रण का प्रारंभ हस्त लेखन पद्धति के लिए मृत्यु की घड़ी सिद्ध हुआ, क्यों कि इस से हस्त-लेखन कला अदृश्य होने लगी। हा, अभी बिल्कुल ही नष्ट नहीं हुई थी, परन्तु अपनी मृत्यु की घडियां गिन रही थी। ऐसी विषम परिस्थिति में पवित्र आगमप्रन्थों की चिंता मुनीश्वर को अत्यन्त व्याकुल कर देती थी। आगम-ग्रंथों की ऐसी हालत से मुनीश्वर को नींद हराम हो गई। बाहर से सस्मितवदन शान्त और मूर्तिमान उत्साह के समान दीखनेवाले ये दिव्य पुरुष भीतर से एकान्त में बहुत बेचैन हो उठते थे। पहले भव्य जीवोद्धारक जिनवाणी के ठोस नमूनों के समान वे पवित्र आगम अकाल के कराल पंजे में फंसे थे। उसके बाद श्री देवर्धिगणी क्षमाश्रमण महाराज ने श्री श्रमणसंघ एकत्रित कर सब को जो जितना कण्ठस्थ था से ताड़पत्रों पर लिखवा लिया, और श्रमणसंघ नायकों ने पारस्परिक स्मृति का मेल कर संघ के लिए श्रोतव्य बनाया । आचार्य देव श्री हेमचन्द्राचार्य ने प्रत्येक आगम राजेश्वर श्री कुमारपाल के द्रव्य से सुवर्णाक्षरों तथा रौप्याक्षरों में लिखवाया, तथा स्याही से भी लिखवाया। श्री वस्तुपाल तेजपाल जैसे महामन्त्रियोंने भी लिखवाया था और अजयपाल जैसे अनार्याचरण वाले राजाओं ने भागमो. को ज्वालाओं में झांक दिया । मुगलों ने उनकी होली की । अनार्य देश से आये हुए गौरांगा ने भाले लोगों के भुला कर प्राचीन अन्य खरीद लिए तो कइयों को धमका कर जबरदस्ती से छीन लिया ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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