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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ८४६ भंडार की स्थापना की एवं इसका नामकरण रत्नवंश परम्परा के पंचम पट्टधर बहुश्रुत आगममहोदधि आचार्यप्रवर पूज्य श्री १००८ श्री विनयचंदजी म.सा. (जिनका सुदीर्घ अवधि तक जयपुर स्थिरवास विराजना रहा) की स्मृति में किया गया। सुश्रावक श्री सोहनमलजी कोठारी ने अपनी नि:स्वार्थ महनीय सेवाएं देकर ज्ञान-भण्डार को व्यवस्थित | करने में अप्रतिम योगदान किया। उनके स्वर्गस्थ होने के पश्चात् श्री श्रीचन्दजी गोलेछा एवं तदनन्तर श्री नथमलजी || हीरावत इसकी व्यवस्था देखते रहे हैं। श्री बाबूलालजी जैन वर्तमान में इसके व्यवस्थापक हैं। ____ भंडार में इस समय लगभग २५००० ग्रंथों का विशाल संग्रह है। ये ग्रंथ १२ वीं शती से लेकर १९ वीं शती | के कालखण्ड को अपने में समेटे हुए हैं। इनमें कुछ ताड़पत्र, भोजपत्र व सचित्र ग्रंथ भी हैं, जो अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। व्यक्तिगत संग्रहों से प्राप्त ग्रन्थों से भण्डार की समृद्धि होती रही। भंडार के संग्रहालय के मुख्य तीन विभाग हैं १- हस्तलिखित ग्रन्थागार २- अलभ्य चित्रावली ३- दुर्लभ प्रकाशित ग्रन्थ इस ज्ञान भण्डार में विभिन्न धर्म-दर्शन, इतिहास, संस्कृति आदि से सम्बद्ध लगभग ८५०० प्रकाशित पुस्तकें उपलब्ध हैं , जिनके अध्ययन का लाभ विश्वविद्यालय के शोधार्थी छात्र भी लेते रहते हैं। जयपुर शहर में यह अपने आपमें विशिष्ट पुस्तकालय है। इस ज्ञानभण्डार के निदेशक डॉ. नरेन्द्र जी भानावत के निर्देशन में सूचीपत्र का प्रकाशन भी हुआ है। • आचार्य श्री शोभाचन्द्र ज्ञान भण्डार , जोधपुर जोधपुर के घोड़ों का चौक स्थित इस ज्ञान भण्डार में हस्तलिखित ग्रन्थों , पाण्डुलिपियों एवं पुट्ठों का अच्छा संग्रह है। इसका कार्य श्री कंवरराज जी मेहता देख रहे हैं। • श्री जैन रत्न पुस्तकालय, सिंह पोल, जोधपुर इसकी स्थापना वि.स. १९९० आषाढ कृष्णा तृतीया को की गई। यह पुस्तकालय सिंहपोल स्थानक में संचालित है। पुस्तकालय का सिंहपोल स्थित भवन रियाँ वाले सेठ श्री घनश्यामदास जी की धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती मोहनकंवरजी द्वारा बनवा कर भेंट किया गया। इस पुस्तकालय की स्थापना के उद्देश्य निम्नांकित रहे(१) ज्ञान-वृद्धि हेतु आगम-साहित्य एवं विभिन्न उपयोगी ग्रंथ उपलब्ध करवाना। (२) जैन धर्म व दर्शन की पुस्तकों का संग्रह करना तथा समाज में जैन धर्म के अध्ययन के प्रति रुचि बढ़ाने का प्रयास करना। (३) सामयिक उपयोगी साहित्य का निर्माण एवं प्रकाशन करना। पुस्तकालय में आगम एवं उनकी टीकाओं के अतिरिक्त न्याय, व्याकरण, काव्य , अलंकारशास्त्र, नाटक, चरित्र, स्तोत्र, धार्मिक-कथानक, पुराण आदि से सम्बद्ध साहित्य उपलब्ध है। प्राचीन उच्च स्तरीय ग्रन्थ इस पुस्तकालय की निधि हैं। पुस्तकालय के संचालन में सुश्रावक श्री रिखबचन्दजी सिंघवी की उल्लेखनीय सेवाएँ सुदीर्घकाल तक
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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