SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 884
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ८१४ | हैं। ज्ञान क्रिया के अनुपम संगम, प्रवचन प्रभाकर, आगम- रत्नाकर आचार्यप्रवर साम्प्रदायिकता व निन्दा विकथा से कोसों दूर हैं। · श्री शुभेन्द्रमुनिजी म.सा. पं. रत्न श्री शुभेन्द्रमुनिजी म.सा. का जन्म जोधपुर जिले के काकेलाव ग्राम में वि.सं. २०१२ पौष शुक्ला | द्वितीया को श्री रामबगस जी पुरोहित की भाग्यशालिनी धर्मपत्नी श्रीमती तीजाबाई की कुक्षि से हुआ । आपने जयपुर शहर वि.सं. २०२८ वैशाख शुक्ला अष्टमी रविवार दिनाङ्क २ मई १९७१ को भागवती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होकर आपने पूर्ण मनोयोग से आगमों तथा थोकड़ों का अध्ययन किया । निरन्तर अभ्यास से आपके प्रवचन ओजपूर्ण एवं प्रभावशाली बन गये थे । आपके मुखमंडल पर संयम का तेज चमकता था। आप स्पष्ट | एवं निर्भीक वक्ता थे। गुरु एवं संघ के प्रति समर्पण आपमें जबरदस्त था । लगभग २५ वर्ष के संयमी जीवन में आप श्री ने मण्डावर (सन् १९८४), नागौर (सन् १९८५), कोटा (१९८६), | हिण्डौन (१९८८) सवाई माधोपुर (१९९०), मेड़ता (१९९१) में स्वतन्त्र चातुर्मास कर जिनशासन की विशिष्ट छाप | छोड़ी। नागौर चातुर्मास में एक साथ १०८ तप-साधकों ने अठाई तप अंगीकार किया, जिनमें स्थानकवासी, तेरापंथी | एवं मन्दिरमार्गी सब सम्मिलित थे । पल्लीवाल क्षेत्र में आप माधवमुनिजी के रूप में जाने गए। आपके संयमी एवं ओजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनेक जैनेतर बन्धु भी आपके भक्त बन गए । आपने प्रथम और अन्तिम दोनों चातुर्मास भोपालगढ़ में किए । अन्तिम चातुर्मास के पूर्व ब्रेन ट्यूमर हो जाने | से आपके शरीर में बहुत अधिक वेदना रहती थी । उपचार से कुछ समय राहत महसूस हुई, परन्तु वि.सं. २०५२ के | भोपालगढ़ चातुर्मास में फिर वेदना बढ़ गयी । वेदना के समय आपने पूर्ण समाधिभाव बनाये रखने की जागरूकता | रखी । अन्त में सेवारत तत्त्वचिन्तक श्री प्रमोदमुनिजी म.सा. ने कार्तिक शुक्ला अष्टमी मंगलवार को सागारी संथारा तथा कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी रविवार दिनांक ५ नवम्बर १९९५ को प्रातः १०.१५ बजे यावज्जीवन संथारा संघ की साक्षी से करा दिया। आपने दोनों हाथ जोड़कर संथारे के प्रत्याख्यान स्वीकार किये । मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी बुधवार १५ नवम्बर १९९५ को १६ दिवसीय तप संथारे के साथ ही आपने सायं ४ बजकर ५५ मिनट पर नश्वर देह का त्याग कर दिया। • श्री महेन्द्र मुनिजी म.सा. में महान् अध्यवसायी श्री महेन्द्रमुनिजी म.सा. का जन्म वि.सं. २०११ श्रावण शुक्ला नवमी को महामंदिर जोधपुर हुआ। आपको धर्मनिष्ठ पिता सुश्रावक श्रीमान् पारसमलजी सा. लोढा तथा माता तपस्विनी सुश्राविका श्रीमती सोहनकंवरजी लोढा से धर्मभावना के सुसंस्कार जन्म से अधिगत हुए। आपने स्नातक (B.Com.) तक का व्यावहारिक शिक्षण प्राप्त किया। आपका घरेलू नाम श्री तखतराजजी लोढा था । परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से आपने वि.सं. २०३२ वैशाख शुक्ला | चतुर्दशी २४ मई १९७५ को स्टेडियम मैदान, जोधपुर में श्रमण धर्म की पावन प्रव्रज्या अंगीकार की । दीक्षित होने पर आपका नाम 'महेन्द्रमुनिजी' रखा गया। दीक्षित होकर गुरु-सेवा में रहते हुए आपने थोकड़ों व आगमों का गहन अभ्यास प्रारम्भ किया, फलत: कुछ ही वर्षों में आपने दशवैकालिक, नन्दीसूत्र, सुखविपाक, आचारांग, उत्तराध्ययन | आदि अनेक आगम तथा थोकड़े कण्ठस्थ कर लिये ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy