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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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रक्षा-बन्धन
(तर्ज- जीव की जतना कर....) जीव की रक्षा कर लीजे रे२ रक्षा बन्धन पर्व भाव से सच्चा पा लीजे ॥टेर ॥ जीव दया ही रक्षा भारी, मन में बांधीजे । इह भव पर भव पामे साता, अविचल पद लीजे ॥१॥जीव ॥ रक्षा बांधे बहन भाई के, पुरजन के भूदेव । ज्ञान-सूत्र से बांधे गुरुजन, जन्म मरण छीजे ॥२॥जीव ॥ शील सूत्र सतवंती बांधे, ज्यूं सुभद्रा नार ।। सुर, नर, दानव रक्षा बल से, चरण नमे रीझे ॥३॥जीव ॥
(५८) चातुर्मास काल
(तर्ज - सुनलो भव प्राणी...) वर्षा ऋतु आई मुनिवर कीधा है बंद विहार जी ।। आतम शान्ति का, करलो विचार जी ॥टेर ॥ भूमि पर हरियाली छाई, जल थल हो गये एक । जिनवाणी बरसे है हृदय पर, धर्म बीज धर नेक ॥१॥वर्षा || विषय कषाय घटाय प्रेम से, नियम करो मन धार ।। धर्म क्रिया में आलस अरू मत लाओ बेदरकार ॥२॥वर्षा ॥ श्रावक की आदर्श जीवनी, शिक्षा दे हितकार ।। धन दारा से ममत्व घटाकर, सद् व्यय करना सारजी ॥३॥वर्षा ॥ सामायिक पौषध निशि भोजन, त्याग अरू यल विशेष। खान-पान आरंभ कार्य में, है यह कर्तव्य लेश जी ॥४॥वर्षा ॥ जीवन के मलिनाचारों की मन से करना शुद्धि । योग्य क्षेत्र में ही सम्पति को, बोने की हो बुद्धि ॥५॥वर्षा ॥ पुण्योदय या इतर हेतु से, सन्धि मिली नवीन । सदुपयोग कर लाभ उठावें, तो है पुरुष प्रवीण जी ॥६॥वर्षा ॥