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________________ |७९२ (५१) भगवान तुम्हारी शिक्षा जीवन को शुद्ध बना लेऊँ, भगवान् तुम्हारी शिक्षा से सम्यग्दर्शन को प्राप्त करूँ, जड चेतन का परिज्ञान करूँ । जिनवाणी पर विश्वास करूँ, भगवान तुम्हारी शिक्षा से ॥१॥ अरिहंत देव निर्ग्रन्थ गुरु, जिन मार्ग धर्म को नहीं बिसरूँ । अपने बल पर विश्वास करूँ, भगवान तुम्हारी शिक्षा से हिंसा असत्य चोरी त्यागूँ, विषयों को सीमित कर डालूँ जीवन धन को नहीं नष्ट करूँ, भगवान् तुम्हारी शिक्षा से ॥ २ ॥ । ॥ ३ ॥ (५२) सच्ची सीख (तर्ज- वीर प्रभु के गुण नित्य गाये जा) जिन्दगी है संघ की, सेवा में लगाए जा । वीर के चरणों में प्यारे दिल को रमाएजा ॥टेर ॥ गुरु मात गुरु तात, गुरु सच्चे जानो भ्रात । आत्म शांति पाने हेतु ध्यान तँ लगाए जा ॥१ ॥ धन दारा के त्यागी हैं, जो विश्व में विरागी हैं जो । सत्य के अनुरागी उनका मान बढ़ाये जा ॥ २ ॥ काम क्रोध मोह लोभ, विश्व में बढ़ाते क्षोभ । गुरु का प्रताप पाय, दोषों को हटाए जा ॥ ३ ॥ देव हैं परोक्ष आज, गुरु उनका करते काज । परमेश गुरुदेव ही मनाए जा ॥४॥ पूज्य शोभाचंद से विश्व में हुए मुनिंद । प्रत्यक्ष , 'गजमुनि' गुरुजी को शीष नमाए जा ॥५ ॥ (५३) कौमी हमदर्दी (तर्ज - लाखों पापी तिर गये सत्संग के प्रताप से) (भाइयों) जैनिओं ! कौमी हमीयत आप अब तो सीख लो । रसभरी प्याली मुहब्बत की, पिलाना सीख लो ॥टेर ॥ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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