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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
(४२)
आचार्य-परम्परा (तर्ज- सुज्ञानी जीवा)
प्रतिदिन जप लेना, त्यागी गुरुओं को भविजन भाव से |टेर ॥
महावीर के शासन भूषण, धर्मदास
मुनिराय ।
हो
शूर
दूर ॥ २ ॥प्रति ॥
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हो ॥५॥प्रति ॥
परम प्रतापी धर्म प्रचारक, थे आचार्य महान शिष्य निन्नाणु हुए आपके ज्ञान क्रिया में धन्नाजी ने मरुभूमि से, किया कुमत को पट्टधर भूधर पूज्य प्रतापी, शिष्य जिन्हों के चार रघुपत, जयमल, जेतसिंह अरु कुशलचन्द्र लो धार हो ॥ ३ ॥ प्रति ॥ रघुपत, जयमल, कुशलाजी के, हुआ शिष्य समुदाय । कुशल वंश के पूज्यों का मैं, ध्यान करू - चितलाय हो ॥४ ॥प्रति ॥ गुमानचन्द्र और रत्नचन्द्र जी, शासन के शृंगार । चाचा गुरु थे रत्नचन्द्र के, दुर्गादास अनगार चार बीस संवत्सर लग रखने को सम्मान रत्नचन्द्र गणिपद नहीं लीना, पूज्य दुर्ग को मान हो दुर्गादास के बाद रत्नमुनि को दीना गण भार गुरु गुमान की मर्यादा में, गणपति थे सुखकार हो कुशल वंश के पूज्य तीसरे, हमीरमल्ल परम प्रतापी पूज्य कजोड़ी, महिमा कही पंचम पूज्य बहुश्रुतधारी, विनय चन्द्र शोभाचन्द्र जी पूज्य हुए छट्ट, दमियों के वादीमर्दन कनीरामजी, बालचन्द्र चन्दन मुनिवर शीतल चन्दन, मुनित्रय थे सुखकार ॥१० ॥प्रति ॥
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॥६॥प्रति ॥
।
॥७ ॥प्रति ॥
न
तपधार ।
मुनिराय
जाए
॥१ ॥ प्रति ॥
।
॥८ ॥ प्रति ॥
मुनिराज
।
सिरताज ॥९ ॥ प्रति ॥
'गजेन्द्र' सब पूज्यों का अनुचर करता उनका ध्यान
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भाव सहित जो पढ़े भविक जन, पावे सौख्य निधान हो ॥ ११ ॥ प्रति ॥