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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं अधमाधम को भी लिये तुम्हीं निज मग में । मैं भी मांगू अय नाथ हाथ शिर धर दो२ ॥४॥रग ॥ क्यों संघ तुम्हारा धनी मानी भी भीरु२, सच्चे मारग में भी न त्याग गंभीरू । सबमें निज शक्ति भरी प्रभो ! भय हर दो२ ॥५॥रग ॥ सविनय अरजी गुरुराज चरण कमलन में २, कीजे पूरी निज विरुद जानि दीनन में । आनंद पूर्ण करी सबको सुखद वचन दो२ ॥६॥रग॥ गाई यह गाथा अविचल मोद करण में२, सौभाग्य गुरु की पर्व तिथि के दिन में । सफली हो आशा यही कामना पूरण कर दो२ ७॥रग ॥
(३२)
बाल-प्रार्थना विनय से करता हूँ नाथ पुकार, संभारो नैया की पतवार। आज बनी है दशा हमारी, चिन्ता जनक अपार ॥१॥ पालक कभी संघ में थे, करते कीट उद्धार ।। आज वहाँ मानव धर्मी की, भी नहीं होती संभार ॥२॥ पर हित करते दान हजारों, भाई के रखवार ।
आज कराते कमाई, होता नहीं उपकार ॥३॥ कलह शूर होकर करते हैं, नष्ट पुण्य बलसार । सुख शांति अरु कीर्ति गमाकर, होते हैं बेकार ॥४॥ ज्ञान दया के आकर हो तुम, विमल शांति भंडार । बाल जीव हम सबके भी, मन करो शक्ति संचार ॥५॥
(३३) भगवत् चरणों में
(तर्ज - तू धार सके तो धार संयम सुखकारी) होवे शुभ आचार प्यारे भारत में, सब करें धर्म प्रचार,
प्यारे भारत में ॥टेर ॥