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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
तन पुष्टि-हित व्यायाम चला, मन पोषण को शुभ ध्यान भला । आध्यात्मिक बल पाना चाहो, तो सामायिक साधन कर लो ॥४॥ सब जग जीवों में बंधुभाव, अपनालो तज के वैर भाव । सब जन के हित में सुख मानो, तो सामायिक साधन कर लो ॥५॥ निर्व्यसनी हो, प्रामाणिक हो, धोखा न किसी जन के संग हो । संसार में पूजा पाना हो, तो सामायिक साधन कर लो ॥६॥ साधक सामायिक-संघ बने, सब जन सुनीति के भक्त बने नर लोक में स्वर्ग बसाना हो, तो सामायिक साधन कर लो ॥७ ॥
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(१६)
गुरु- भक्ति (तर्ज- साता बरतेजी)
घणो सुख पावेला, जो गुरु वचनों पर प्रीति बढ़ावेला ||टेर ॥ विनयशील की कैसी महिमा, मूल सूत्र बतलावेला । वचन प्रमाण करे सो जन, सुख सम्पत्ति पावेला ॥१ ॥ घणो ॥
गुरु सेवा जौर आज्ञाधारी, सिद्धि खूब मिलावेला । जल पाये तरुवर सम वे, जग में सरसावेला ॥२॥घणो ॥ वचन प्रमाणे जो नर चाले, चिंता दूर भगावेला । आप मति आरति भोगे नित, धोखा खावेला ॥३ ॥घणो ॥ एकलव्य लखि चकित पांडुसुत, मन में सोचकरावेला । कहा गुरु से हाल भील भी, भक्ति बतलावेला ॥४ ॥घणो ॥ देश भक्ति उस भील युवा की, वनदेवी खुश होवेला । बिना अंगूठे बाण चले यों, बर दे जावेला ॥५ ॥ घणो ॥ गुरु कारीगर के सम जग में, वचन जो खावेला । पत्थर से प्रतिमा जिम वो नर, महिमा पावेला ॥ ६ ॥घणो ॥ कृपा दृष्टि गुरुदेव की मुझ पर, ज्ञान शान्ति बरसावेला । 'गजेन्द्र' गुरु महिमा का नहिं कोई, पार मिलावेला ॥७ ॥ घणो ॥