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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
जीवादिक स्वाध्याय से जानो, करणी करने को
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सुनाने को
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पाने को ॥३ ॥कर लो ॥
देने को ॥४ ॥कर लो ॥
बंध मोक्ष का ज्ञान करो, भव भ्रमण मिटाने को ॥ २ ॥कर लो ॥ तुंगियापुर में स्थविर पधारे, ज्ञान सुज्ञ उपासक मिलकर पूछे, सुरपद स्थविरों के उत्तर थे, सब जन मन गौतम पूछे स्थविर समर्थ है, उत्तर जिनवाणी का सदा सहारा, श्रद्धा रखने को बिन स्वाध्यायन संगत होगी, भव दुःख हरने को ॥५ ॥कर लो ॥ सुबुद्धि ने भूप सुधारा, भव पुद्गल परिणति को समझाकर धर्म दीपाने को नित स्वाध्याय करो मन लाकर शक्ति बढ़ाने को
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जल तिरने को
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॥६ ॥कर लो ॥
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'गजमुनि' चमत्कार कर देखो, निज बल पाने को ॥७ ॥कर लो ॥
हर्षाने को
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(८) स्वाध्याय करो
(तर्ज- उठ भोर भई टुक जाग सही...)
॥ १ ॥
जिनराज भजो, सब दोष तजो, अब सूत्रों का स्वाध्याय करो । मन के अज्ञान दूर करो, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो ॥ ॥ जिनराज की निर्दूषण वाणी, सब सन्तों ने उत्तम जानी । तत्त्वार्थ श्रवण कर ज्ञान करो, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो स्वाध्याय सुगुरु की वाणी है, स्वाध्याय ही आत्म कहानी है । स्वाध्याय दूर प्रमाद करो, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो ॥२॥ स्वाध्याय प्रभु के चरणों में, पहुंचाने का साधन जानो । स्वाध्यायमित्र, स्वाध्याय गुरु, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो ॥३ ॥ मत खेल-कूद निद्रा, विकथा, में जीवन धन बर्बाद करो । सद्ग्रन्थ पढ़ो, सत्संग करो, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो ॥४ ॥ मन-रंजन नाविल पढ़ते हो, यात्रा विवरण भी सुनते पर निज-स्वरूप ओलखने को, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो ॥५ ॥ स्वाध्याय बिना घर सूना है, मन सूना हैं सद्ज्ञान बिना । घर-घर गुरुवाणी गान करो, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो ॥६॥
हो ।
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