SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 810
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ७४२ थे। (6) Concept of Prayer प्रार्थना प्रवचन नामक पुस्तक का यह अंग्रेजी अनुवाद है। अनुवाद का कार्य आर. सी. भण्डारी और हिम्मत | सिंह सरूपरिया द्वारा किया गया है। पुस्तक का प्राक्-कथन प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. डी. एस. कोठारी ने लिखा है एवं प्रकाशन सन् १९७४ में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर द्वारा किया गया है। (७) गजेन्द्र व्याख्यानमाला - पहला भाग ___ गजेन्द्र व्याख्यानमाला के अब तक सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर से सात भाग प्रकाशित हुए हैं। प्रथम भाग में सन् १९७५ के ब्यावर-चातुर्मास के समय पर्युषण-पर्वाधिराज के अवसर पर आचार्य प्रवर द्वारा फरमाये गये आठ दिनों के व्याख्यान संकलित हैं। प्रवचन सभी रोचक एवं तात्त्विक बोध कराने वाले होने के साथ सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा करते हैं। दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, भक्ति, स्वाध्याय, दान और अहिंसा विषयों का सरल ढंग से विवेचन हुआ है। तप का विवेचन करते हुए आपने फरमाया तप की परीक्षा क्या ? तन तो मुझया सा लगे, पर मन हर्षित हो उठे। शरीर से ऐसा लगे कि शरीर तप रहा है, पर मन हर्ष से प्रफुल्लित हो उठा है। यह कब होगा ? जब कि साधक चाहेगा कि मुझे भूख प्यास सहनी है, सर्दी गर्मी सहनी है, अमुक वस्तु का त्याग करना है, क्योंकि मुझे इस तरह के अभ्यास के द्वारा अपनी आत्मा की अनंत शक्ति को यथाशक्ति चमकाना है।" हिंसा का विवेचन करते हुये फरमाया - “वस्तुत: किसी प्राणी की हिंसा करने वाला व्यक्ति न केवल दूसरे प्राणी की ही हिंसा करता है, अपितु वह उस हिंसापूर्ण कृत्य द्वारा पहले अपनी स्वयं की, अपने ज्ञान-दर्शन-चारित्र | आदि आत्म गुणों की हिंसा करता है।" स्वाध्याय को समाज धर्म बनाने पर बल देते हुये आचार्यप्रवर ने कहा - "आज जो घर-घर में लड़ाई-झगड़े, मन मुटाव आदि विकृतियों के विविध रूप देखने को मिलते हैं, इन सारी विकृतियों का एक ही इलाज है-स्वाध्याय।” (८) गजेन्द्र व्याख्यान माला - दूसरा भाग . सन् १९७३ के जयपुर चातुर्मास में फरमाये गये प्रवचनों में प्रारम्भिक तेरह दिनों के प्रवचन इसमें प्रकाशित हैं। प्रवचनों के विषय हैं- आत्मपरिष्कार, सन्त शरण, महान सन्त आचार्य श्री शोभा चन्द्र जी म.सा, मोक्ष-मार्ग, सम्यक् ज्ञान, अध्यात्म-विज्ञान, साधना के ज्ञातव्य सूत्र, सिद्धि के सोपान, काल की लीला और रक्षणीय की रक्षा (रक्षा-बन्धन)। मोक्ष मार्ग पर दो और सम्यग्ज्ञान पर तीन प्रवचन संकलित हैं। सभी प्रवचन जीवों को सम्यग्दिशा प्रदान करते हैं तथा स्वयं सोचने के लिए तत्पर कर पाठक का पथ प्रदर्शन करते हैं। 'आत्म परिष्कार' शीर्षक के अन्तर्गत दिये गये प्रवचन का कुछ अंश यहाँ उद्धृत है - “यदि अपनी आत्मशक्ति को विकसित करना है तो उस पर पड़ा हआ जो मलबा है उसे साफ करना होगा। इस मलबे को हटाने का कार्य भी हमें स्वयं को ही करना होगा। सहारे के रूप में, मार्गदर्शक के रूप में, शास्त्रों और सद्गुरुओं का (सहयोग लिया जाता है। सद्गुरु और शास्त्र हमें मलबा कैसे दूर किया जाय, इसका उपाय बता सकते हैं। लेकिन वह)
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy