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प्रथम खण्ड: जीवनी खण्ड
__ यह शिशु विश्व की एक महान् विभूति था। गुणों के अनुरूप ही शिशु का नाम रखा गया 'हस्तिमल्ल' । यह नाम माँ रूपादेवी को गर्भकाल में आए स्वप्न के आधार पर सुझाया गया था, जो शिशु की दादीमाँ नौज्यांबाई एवं नाना गिरधारी लाल जी को खूब भाया। स्वप्न में माँ ने देखा कि एक हाथी उनके मुख में प्रवेश कर रहा है। माँ का यह स्वप्न बालक के नामकरण का आधार बना और आगे चल कर बालक ने इस नाम को सचमुच सार्थक किया। वह अखिल जगत की एक 'हस्ती' बना। श्वेत गजराज की मस्ती गुरुदेव हस्ती में स्पष्टतः परिलक्षित होती थी। वे केवल 'हस्ती' नाम से ही नहीं, अपितु हस्ती के पर्यायवाची शब्दों से भी पहचाने गए, यथा 'गजेन्द्र', 'गजमुनि' आदि । (आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. स्वयं अपने काव्यों में 'गजमुनि' या 'गजेन्द्र' जैसे शब्दों का प्रयोग करते थे।)
बालक हस्तिमल्ल का जब जन्म हुआ तब निखिल विश्व पर द्वितीय विश्व युद्ध के काले कजरारे बादल मंडरा रहे थे। ऐसे समय मानवता की अस्मिता को अक्षुण्ण रखने हेतु १३ जनवरी को आपका जन्म एक और विशेषता लिए हुए था। इस दिन सूर्य कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर गमनशील था। मकर संक्रान्ति एक शाश्वत दिवस है। हिन्दी, अंग्रेजी सभी पंचांगों के अनुसार मकर-संक्रान्ति सदैव १४ जनवरी को होती है। इस शाश्वत दिवस की तैयारी से जुड़ा हुआ आपका जन्म शाश्वत लक्ष्य की प्राप्ति का संकेत दे रहा था। तीसरी बात यह कि आपका जन्म चतुर्दशी को हुआ जो तप-त्याग का संकेत देती है। चतुर्दशी धार्मिक दृष्टि से एक पर्व दिवस है तो 'चांदणी चौदस रो जायो' कहावत के अनुसार लौकिक दृष्टि से शुक्ला चतुर्दशी को जन्मा बालक पुण्यशालिता का धनी माना जाता है। चौथा तथ्य यह है कि शुक्ला चतुर्दशी के पश्चात् पूर्णिमा का आगमन होता है। यह चन्द्रमा की कला के पूर्ण विकास की पूर्वावस्था है। यह दिवस मेधावी शिशु हस्ती के भावी निर्मल आध्यात्मिक विकास का संकेत कर रहा था। इस तरह विविध आधारों से बालक हस्ती का जन्म न केवल बोहरा कुल के लिए, न केवल पीपाड़ के लिए, न केवल मारवाड़ के लिए अपितु सम्पूर्ण देश, समाज एवं प्राणिजगत् के लिए महत्त्वपूर्ण प्रतीत हो रहा था।
हस्तिमल्ल नाम अनोखा नाम था। यह कोई आकस्मिक संयोग नहीं, अपितु भावी पूर्वाभास था। 'शक्रस्तव' | में देवेन्द्र ने तीर्थंकर को 'गन्धहस्ती' की उपमा दी है। उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में धवल हस्ती का उल्लेख है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में भद्रहाथी को सर्वोत्तम माना है। चतुरंगिणी सेना में हस्ती प्रमुख होता है। बालक हस्ती के चरणों में 'पद्म' का आकार बना हुआ था, जो सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार प्रबल पराक्रमी एवं प्रखर प्रज्ञावान का लक्षण माना जाता है। यह हस्ती अगणित नाभिकीय परमाणु बमों की प्रलयंकारी शक्ति को शमित करने वाली अहिंसा की अनन्त ऊर्जा से युक्त महातेजस्वी था। • कुल का एकमात्र चिराग
वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या, जिस पथ पर बिखरे शूल न हों। नाविक की धैर्य कुशलता क्या,
धाराएं यदि प्रतिकूल न हों। विपदाओं में ही महानता जन्म लेती है। बालक हस्ती न अपने दादा का मुख देख सके, न ताऊ का और न ही पिता का। दादी नौज्यांबाई एवं माता रूपादेवी के आहत हृदयों को आह्लाद से भरने के लिए ही मानों हस्ती का | जन्म हुआ था। दादी नौज्यां एवं माता रूपा के लिए अब हस्ती ही एक आशा की किरण थी, वही अपने प्रपितामह के कुल का एक मात्र चिराग था। उसका लालन-पालन दोनों ने बड़े दुलार एवं प्यार पूर्वक किया।