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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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माता रूपा के नन्दन हैं, केवलचन्द जी कुल चन्दन हैं। ब्रह्मचारी बाल यतीश्वर की, जय बोलो ॥१॥ बहु सूत्री सूत्र विचारक हैं, समभाव के शुद्ध प्रचारक हैं, इस परम शांत योगीश्वर की, जय बोलो ॥२॥ शिष्य सब ही आज्ञाकारी हैं, विद्वान तेज तप धारी है, महिमामय जगत हितेश्वर की, जय बोलो ॥३॥ स्वाध्याय संघ के सर्जक हो, जन जन में ज्ञान गुण वर्धक हो, जिन शासन धर्म दिवाकर की, जय बोलो ॥४॥ 'गोविन्द' अरज गुरुवर करता, श्रद्धा के सुमन अर्पण करता, विश्वास है आस फले मन की, जय बोलो ॥५॥
ज्ञान के निधान हैं
उदीयमान सूर्य तुल्य सौम्य तेज पुंज को । महान तीन रत्न से खिले हुये निकुंज को ॥ विशाल भाल से सदैव जो प्रकाशमान हैं । नमो गणी गजेन्द्र जो कि ज्ञान के निधान हैं ॥१॥ पवित्र भू पीपाड के प्रदीप्त पूर्ण चन्द्र हैं । । गजेन्द्र भव्य प्राणियों के प्राण औ मुनीन्द्र हैं ॥ टपक् टपक् टपक रही , सुधा भरी गिरा सदा । सुमंत्र मुग्ध हो रहे, गणीन्द्र से सभी मुदा ॥२॥ मुखारविन्द ओजपुंज इंदु सा चकासता । सहस्र भानु तुल्य दिव्य तेज है प्रभासता ॥ दयार्द्रभाव मात्र से विनष्ट कष्ट हो रहे ।