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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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जिन शासन दिव्य दिवाकर की ॥टेर । पीपाड़ नगर में जन्म लिया रूपा - केवल को धन्य किया बोहरा परिवार प्रभाकर की ॥जय ॥ लघु वय में ही जग छोड़ दिया मन को संयम से जोड़ लिया 'शोभा' के गुण रत्नाकर की ॥जय ॥
आगम का गहरा ज्ञान किया विद्वानों को बहुमान दिया शीतलता थी सुर तरुवर की ॥जय ॥ सामायिक लो स्वाध्याय करो जीवन में दिव्य प्रकाश भरो जन-जन में प्रेरणा पूज्यवर की ॥जय ॥ घर-घर में गुणगाथा होती अर्पित हैं श्रद्धा के मोती मुनि “गौतम" करुणा सागर की ॥जय ॥
(३७)
तेरी वन्दना करें (दिनांक २१.४.९१ को आचार्य भगवन्त के शरीर को वैकुण्ठी (मांडी) में बरन्डे में रखते समय गाया गया गीत) ||
माँ रूपा के लाल तेरी वन्दना करें केवल कुल की शान तेरी वंदना करें ॥टेर ॥ दुःख का मारा आया कोई सुख उसे मिला, लाया झोली खाली जो भी भरके वह चला, ध्यान मग्न ज्ञान बाँटा, साधना करें ॥१॥वन्दना करें। प्रभुजी अधीन आपके, पावन दयालु दीन, हुए ज्योत में मिला के ज्योत संथारा में लीन, मोक्ष में ठण्डी नजर भक्तों पर धरें ॥२ ॥वन्दना करें। पुण्य भाग्यशाली वह नगरी निमाज थी,