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________________ ७१४ (२०) वन्दे मुनिवरम् (५९ वीं जन्म जयन्ती के उपलक्ष्य में) (तर्ज- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं....) मारी है I आओ भय्या तुम्हें कराएँ, झांकी गुरु भगवान की, इन चरणों में नमन करो, यहाँ बहती गंगा ज्ञान की । वन्दे मुनिवरम् वन्दे गुरुवरम् ॥टेर ॥ पंच महाव्रत पालन करते पंचाचार विहारी हैं । निग्रह कीना पंचइन्द्रिय का, समिति गुप्ति के धारी हैं। नौ बाड़ों से ब्रह्म पालते, कैसी ममता क्षमा नम्रता सहज सरलता, उपशम गुण के धारी हैं। गुण छत्तीस से शोभित होते, तेजस्वी गुणवान की ॥१॥इन. ॥ वन्दे मुनिवरम्आठ सम्पदा के स्वामी हैं, सुनलो आज सुनाता हूँ । स्वयं पालते और पलवाते, प्रथमाचार बताता हूँ । सूत्र अर्थ के ज्ञाता हैं जो, ओजस्वी तन पाता वाक् चतुरता भाषण शैली, सुनकर मोद मनाता प्यासी रहती जनता इनके उपदेशामृत पान की ॥२॥इन. ॥ वन्दे मुनिवरम्— शास्त्र वाचना निधि पांचवीं, भिन्न भिन्न समझाते हैं । तीक्ष्ण मति ही तुच्छ वस्तु से, सार ग्रहण कर परवादी मत भंजन करते, वाद जीत कर आते साधक को जिससे साता हो, ऐसे काम कराते नहीं लालसा, होती इनको, मान और अपमान हूँ । पाते नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं वन्दे मुनिवरम्- सामायिक स्वाध्याय करो यह, सब दुःख भंजन हारा है । तारा है । भवसागर में डूबे जन को, दिक् सूचक ध्रुव हर प्राणी को सभी समय में, इसका एक इतनी सी शिक्षा जो धारें, बेड़ा पार है । है । सहारा हमारा हैं । हैं । हैं । की ॥३ ॥इन. ॥
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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