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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं सार्द्धलक्षाधिका:प्राप्ता मानवास्तत्र सर्वतः। अंतिम दर्शनं कृत्वा श्रद्धांजलि समार्पयन् ॥१९॥ समाधिमरणं तादृक् , द्रष्टुं प्राय: सुदुर्लभम् । अतोऽपि राजनेतारः, श्रद्धार्पणार्थमागता: ॥२० ॥ प्रज्वालित:शवस्तस्य, श्रावकैश्चन्दनार्चिभिः । जयघोषेर्नभोऽगुञ्जत् , ख्याति निमाजमाप्तवत् ॥२१ ॥ नूतनाचार्योपाध्याययोः घोषणा श्रद्धाञ्जलिसभामध्ये, हस्तिलेखो सुवाचित:। आचार्यों रत्नवंशस्य, हीराचन्द्रो भविष्यति ॥२२ ॥ उपाध्यायपदे भूत्वा, संघसंचालने सदा। मानचन्द्रो मुनिस्तस्य, ‘सहयोगं करिष्यति ॥२३ ॥ आचार्यहस्ती विजयताम् सम्यग्ज्ञाननिधिहस्ती, सम्यक्श्रद्धासमन्वित: । मुक्तिपथे समारूढः सम्यक्चारित्रपालकः ॥२४ ॥ साधकानां कृते पन्था, प्रशस्तो तेन साधुना। जयस्तस्य भवेल्लोके, यावच्चन्द्रदिवाकरौ ॥२५ ॥
(१३) आचार्य श्री गजेन्द्र गणगान
(रचयिता-श्री हीरामुनि)
(तर्ज - जो भगवती त्रिशला तनय) जो महासती रूपा तनय, केवल सुकुल के भान हैं। दीक्षित हुए अजमेर में, प्रिय नाम 'गज' गुणवान हैं ॥१॥ करुणाई मन नवनीत सा (कोमल सरल), व्रत नियम में चट्टान हैं। वाणी मधुर लाती लहर, उपदेश पटु श्रुतवान हैं ॥२॥ शतदल प्रफुल्लित सा वदन, जीते मदन मतिमान हैं। ज्ञानी प्रबल करणी अतुल, धर्मी जगत की शान हैं ॥३॥ आबाल ब्रह्मवती गुणी, संयम नियम के धाम हैं। उन पूज्य हस्ती मुनीश को, मम कोटि- कोटि प्रणाम हैं ॥४॥ [इन पूज्य हस्ती मुनीश को, मेरे अनेक प्रणाम हैं ॥]