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________________ तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड ६९९ इस संसार में जिनवाणी से बढ़कर कोई सुन्दर दृष्टि गोचर नहीं होता। उस जिनवाणी का उपदेश फरमाने वालों में आचार्य श्री प्रसिद्ध हैं। मुनि श्री घासीलाल जी द्वारा रचित यह अष्टक श्री हस्तीमल्लजी म. सा. के गुण वर्णन स्वरूप रचा गया है। ऐसे शुद्ध बुद्धि के धारक आचार्य श्री हस्तीमल्लजी को देखकर पाप स्वयं पलायमान हो जाते हैं अर्थात् दूर हो जाते हैं । (४) गजेन्द्र गुणाष्टकम् (श्री वल्लभ मुनिजी) श्रामण्यदीक्षां, जिनधर्मशिक्षाम्, तत्त्वसमीक्षां, भवतो मुमुक्षाम् । बाल्यात्प्रभृत्येव तु यः सिषेवे विद्वद्वरोऽयं जयताद् गजेन्द्रः ॥ १ ॥ लेकर श्रमण योग की दीक्षा, जैन धर्म का शिक्षा सार, तत्त्व समीक्षा में पटुता हित, छोड़ दिया जिनने संसार । बाल्यकाल से किया जिन्होंने सेवन व्रत रत बन अनगार ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की हो जगती में जय जयकार ॥१ ॥ यस्यास्य चन्द्रोऽमितमोदकर्ता, अमन्दजाड्यान्धतमिस्रहर्ता । ज्ञानामृतं भव्यमनःसुभर्ता, विद्वद्वरोऽयं जयताद् गजेन्द्रः ॥ २ ॥ जिनका शशि मुख जनगण मन को देता है, प्रिय हर्ष अपार, और दर्शकों का करता है जड़ता रूपी तम परिहार | जो सांसारिक जन मानस में भरते निश दिन ज्ञान विचार, ऐसे बुधवर मुनि गजेन्द्र की, हो जगती में जय जयकार ॥२॥ जीवानुकम्पाप्लुतचित्तवृत्ति:, सत्यान्विताऽनिष्ठुरवाक्प्रयोक्ता । परोपकारी मितपथ्यभोजी, विद्वद्वरोऽयं जयताद् गजेन्द्रः ||३ || जिनके मन में जीवों के प्रति करुणा का है पारावार, तथा सत्य युत् नम्र वचन मय, जिनका होता है उद्गार ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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