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________________ द्वितीय-स्तबक काव्याञ्जलि में निलीन व्यक्तित्व (१) वन्दे गुरुं हस्तिनम (छन्द - शार्दूल विक्रीडितम्) हस्तिमें (हस्ती मे) भवभीति-भेदन-परो, वन्दे गुरुं हस्तिनम्। (हस्तिन: सुगुरुर्गजेन्द्रगणिराट् वन्दे गुरुं हस्तिनम् ।) तीर्णं येन च हस्तिना जगदिदं, तस्मै नमो हस्तिने ॥ दुष्प्राप्यं नहि हस्तिन: यदि दया, स्याद् हस्तिमल्लस्य वै । भक्तिर्वर्धतु हस्तिनि दृढतरा, मे हस्तिमल्ल प्रभो॥ (भक्तिर्वर्धतु हस्तिनि दृढतरा, हस्तिन् गुरो पाहि नः॥) मेरे गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमल्लजी महाराज भव-भय-भंजन में सदा तत्पर रहते हैं, मैं उन हस्तीमल्लजी महाराज को नमस्कार करता हूँ। जिन गुरुदेव श्री हस्तीमल्लजी महाराज ने इस संसार को पार कर लिया है उन पूज्य श्री हस्तीमल्लजी महाराज को नमस्कार है। यदि पूज्य श्री हस्तीमल्लजी महाराज की मुझ पर दया हो तो उनसे कोई भी वस्तु मेरे लिए अप्राप्य नहीं है। मेरी श्रद्धा गुरुदेव श्री हस्तीमल्लजी महाराज के प्रति निरन्तर बढ़ती रहे, हे पूज्य प्रभो हस्तिमल्ल जी ! आपसे मेरी यही प्रार्थना है। टिप्पण - उपर्युक्त स्तुति का यह वैशिष्ट्य है कि इसमें 'हस्तिन्' शब्द की सभी विभक्तियों का प्रयोग हुआ है। (२) बाल्येऽपि संयमरुचि (पं. मुनि श्री घेवरचन्दजी म.) बाल्येऽपि संयमरुचिं चतुरं सुविज्ञम् , कान्तं च सौम्यवदनं सदनं गुणानाम्। मौनेन ध्यानसहितेन जपेन युक्तम्, पूज्यं नमामि गुणिनं गणिहस्तिमल्लम् ॥ [भक्त्या नमामि दमिनं गणिहस्तिमल्लम् ॥
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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