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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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अग्राङ्कित संस्मरण से स्पष्ट है"गुरुदेव के सौभाग्यशाली सान्निध्य को प्राप्त करते हुए उस दिन मैं उनके पाट के पास नीचे बैठा उनके जीवन अध्याय के प्रमुख प्रेरक प्रसंगों व संस्मरणों को विविध पुस्तकों व लेखों में से चुन कर संगृहीत कर रहा था। मैं अपने कार्य को बड़ी तत्परता से अंजाम दे रहा था कि अनायास ही गुरुदेव ने स्नेह संबोधन के साथ सहज प्रश्न किया- 'बच्चू (गौतम), क्या कर रहे हो?' मैंने तुरन्त उत्साह के साथ प्रत्युत्तर दिया, “अन्नदाता ! आपके जीवन से संबंधित संस्मरणों का संकलन कर रहा हूँ।” मेरा यह वाक्य सुनते ही गुरुदेव ने अत्यन्त आत्मीय भावना से जो प्रेरक वचन कहे उनका प्रभाव आज तक मेरे हृदय-स्थल पर अमिट रूप से अंकित है। उन्होंने कहा, “अरे भाई ! जितना समय तू इसमें लगाता है, इतना ही यदि आगम पाठों व जैन शास्त्रों में लगायेगा तो अच्छा पंडित बन जायेगा।" मैं दंग रह गया, मेरे हाथ थम गये। इस युग में ऐसा निर्मोही ! इतनी निस्पृहता ! न आत्म-महिमा की चाह, न स्वयं के प्रति कोई आकांक्षा, अपितु दूसरे के आत्म-उत्थान एवं जीवन-निर्माण की इतनी उत्कृष्ट अभिलाषा देखकर ये दो नेत्र धन्य हो गये।" इन्दौर के उपनगर जानकी नगर में पूज्य आचार्यप्रवर अपने कुछ शिष्य संतों के साथ विराज रहे थे। मौसम संबंधी बदलाव से आचार्य देव के स्वास्थ्य में कुछ शिथिलता आ गयी। चिंतित शिष्यगण ने संकेत द्वारा चिकित्सक को बुलवाया। चिकित्सक ने सन्निकट जाकर आचार्यश्री से सामान्य परीक्षण की अनुमति माँगी। आचार्य श्री ठहरे निस्पृही, अपने शरीर के लिये औषधिसेवन व परीक्षणों से यथासंभव विरक्त रहने वाले। मगर मुस्कराये और न जाने क्या सोच कर सहज भाव से अपना परीक्षण करवा लिया। किसे क्या पता कि उस मुस्कान के पीछे छुपा रहस्य क्या है? चिकित्सक लौटने को उद्यत हुए कि विनोद मुद्रा में आसीन आचार्य श्री की ओर से निश्छल मुस्कान के साथ मांग आयी 'अरे भाई मेरी फीस तो देते जाओ।' नियमों के सर्वथा विपरीत बात । चिकित्सकों ने उनका परीक्षण किया और चिकित्सकों से ही फीस मांगी जा रही थी। यह क्या बात हुई भला? उस महामनीषी का तो संपूर्ण जीवन ही असाधारण था और जानते हैं उस दिव्य साधक ने वह अलौकिक फीस क्या ली? चिकित्सकों से १५ मिनट स्वाध्याय रोज करने के नियम के साथ यह वचन कि भविष्य में दीन, दुःखी, साधनहीन व्यक्ति की चिकित्सा हेतु वे सहज सेवा के भाव से जाने को सदैव तत्पर रहें तथा व्यसन-मुक्त समाज के निर्माण में सक्रिय सहयोग दें। कितनी अद्भुत शैली थी उस महामानव की धर्म और सेवा की प्रेरणा देने की। 'कोसाना' ग्राम में एक व्यक्ति प्रतिदिन दो तोला अफीम सेवन का आदी हो चुका था। अनेकानेक प्रयत्नों के बावजूद भी वह इस व्यसन से मुक्ति नहीं पा सका । अन्ततः निर्व्यसनता के क्षेत्र में आपकी उपलब्धियाँ श्रवण कर वह आशा के साथ आचार्य देव के श्री चरणों में उपस्थित हआ। आचार्यप्रवर ने मात्र ७ दिन उसे अफीम सेवन न करने को कहा तथा यह भी कहा कि यदि वह ७ दिन नियंत्रण कर ले तो जीवन पर्यन्त इस व्यसन से मुक्ति पा सकेगा। आपकी प्रेरणा से उसमें नयी इच्छा शक्ति का संचार हुआ और धर्म का प्रताप देखिये एक भी दिन अफीम के अभाव में न रह सकने वाले व्यक्ति ने उस दिन के पश्चात् अफीम को पुनः छुआ तक नहीं। आज उसका शांत, सुखी, निर्व्यसनी जीवन यकीनन आचार्य भगवन्त की देन है। आचार्य श्री की इस प्रकार की देन एक व्यक्ति, एक परिवार तक सीमित नहीं रही, वरन् पूरे समाज, परे राष्ट्र में आप श्री की प्रेरणा से हजारों लोग व्यसनमुक्त होकर उन्मुक्त स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।