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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
आचार्य-कार्यकाल मात्र ११ वर्ष का था, पर इस अल्प काल में ही आपने इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। आपके शासनकाल में मुनि श्री लालचंदजी महाराज, मुनि श्री हस्तीमलजी महाराज, मुनि श्री चौथमलजी महाराज व श्री बड़े लक्ष्मीचंदजी महाराज ने तथा केवलकुंवरजी, झमकूजी आदि १६ महासतियां जी महाराज ने दीक्षा ग्रहण की। ____ वि.सं. १९८३ श्रावण कृष्णा अमावस्या को जीवन के सच्चे पारखी इस महापुरुष ने जोधपुर में अपनी दैहिक जीवन-लीला समेट कर महाप्रयाण कर दिया।
___ आपके सुशिष्य युगमनीषी प्रात: स्मरणीय आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमलजी महाराज ने बालवय में संयम ग्रहण कर एवं तरुण अवस्था में आचार्य पद पर आरूढ होकर सुदीर्घ संयम-पर्याय एवं सुदीर्घ आचार्य-काल से नव-इतिहास की रचना की। वे इतिहास लेखक ही नहीं, वरन् इतिहास निर्माता थे। वे पद से नहीं, वरन् पद उनसे महिमा मण्डित हुए , वे भक्तों से नहीं, वरन् भक्त जन उन जैसे गुरु पाकर गौरवान्वित हुए। उनका निर्मल विमल निरतिचार अप्रमत्त संयम जीवन, गुणिजनों के प्रति प्रमोद, छोटों के प्रति स्नेह-वात्सल्य एवं बड़ों के प्रति आदर भाव उन्हें महापुरुषों की शृंखला में अग्रगण्य स्थान पर अंकित करता है। वे एक सम्प्रदाय में रहते हुए भी समूचे जैन जगत में 'पूज्य श्री' के नाम से विख्यात रहे। लघु काया में विराट् व्यक्तित्व, अर्वाचीन मान्यताओं के पक्षधर, पर बुद्धिजीवी भक्त समुदाय के भगवान, ज्ञान, क्रिया एवं पुण्यशालिता के अद्भुत संगम आचार्यदेव के जीवन में अपने पूर्ववर्ती महापुरुषों का ही नहीं, वरन् आर्य स्थूलिभद्र की ब्रह्मचर्य साधना, आर्य आर्यरक्षित की मातृभक्ति व ज्ञान-पिपासा तथा बालवय में दीक्षित आर्य वज्र जैसी मस्ती, निर्भीकता एवं संयमनिष्ठा का अद्भुत समन्वय था। यह जीवन चरित्र ‘नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं' उन महामानव के जीवन को ही समर्पित है।
रत्नसंघ पट्टपरम्परा जैन जगत की दिव्य संत-परम्परा का यशस्वी अध्याय है। रत्नसंघ के सभी आचार्यों ने | लघुवय में दीक्षा अंगीकार कर सुदीर्घ संयम-साधना से जिनशासन की महती प्रभावना की। सभी आचार्य भगवंत ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र के अद्भुत संगम थे। सभी आचार्य एक सम्प्रदाय-व्यवस्था की परिधि में रहते हुये भी सदा इसकी भेद-रेखाओं से परे रहे। ऐसे ही महापुरुषों के बारे में आचार्य श्री भूधर जी महाराज द्वारा रचित ये पंक्तियां सार्थक कही जा सकती हैं
वे गुरु मेरे उर बसो, जे भव जलधि जहाज आप तिरे पर तारहिं, ऐसे श्री मुनिराज। वे गुरु चरण जहां धरे, जंगम तीर्थ तेह । सो रज मम मस्तक चढे, भूधर मांगे एह ।।