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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
६०३ चरण दबा रहा था और फिर वह बाबा यकायक अदृश्य भी हो गया । कोठारी जी बुरी तरह भयभीत हो गए। उन्होंने हड़बड़ाते हुए गुरुदेव से पूछा , यह सब क्या था? गुरुदेव ने प्रतिप्रश्न करते हुए पूछा, 'तूं डरा तो नहीं?'
चम्पालाल जी आज भी उस घटना को याद करते हैं तो समझ नहीं पाते हैं कि वह सब क्या था।
महापुरुषों की अलौकिकता की थाह कोई नहीं ले सकता है। • प्रेरणा का कमाल
___ मैं गुरुदेव के दर्शनार्थ मेड़ता से अहमदाबाद जा रहा था । जोधपुर रेलवे स्टेशन पर एक सज्जन ब्रिटिश कोट | |व साफा पहने हुए दिखे। यही सज्जन पुन: मारवाड़ जंक्शन में भी दिखाई दिये।
जब मैं अहमदाबाद पहुंचा तो मेरे से पहले ही वे सज्जन गुरुदेव के समक्ष करबद्ध खड़े दिखाई दिये। बाद में मालूम हुआ कि ये सज्जन जोधपुर रियासत की प्रसिद्ध हस्ती श्री भोपालचंद सा लोढ़ा हैं।
गुरुदेव ने आपको वृद्धावस्था में भी सामायिक सीखने की प्रेरणा दी। आपने गुरु आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए चार दिन अहमदाबाद में ही रुककर सामायिक कंठस्थ की। इतनी वृद्धावस्था में भी आपके सामायिक सीख लेने पर मुझे आश्चर्य हुआ।
वास्तव में यह प्रेरणा का कमाल था। • दाराशिकोह का फरमान
आचार्य श्री मेड़ता विराज रहे थे। एक दिन कोई सज्जन शाहजादा दाराशिकोह का हस्ताक्षरित फरमान लेकर आया, जिसमें लोकागच्छ के साधुओं की सुरक्षा एवं उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ न दिये जाने का आदेश था। यह प्राचीन फरमान इतिहास की दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण था ही , धर्म-सहिष्णुता का भी परिचायक था।
पीपाड़ से पधारे कोठारी परिवार ने उस व्यक्ति से मुँह मांगी कीमत देकर यह फरमान खरीद लिया। यह फरमान आज भी विनयचंद जैन ज्ञान भंडार में सुरक्षित है जिसकी फोटोप्रति मेरे पास विद्यमान है। • श्रुतिलेखन
___ आचार्यप्रवर मेड़ता विराज रहे थे। रात्रि में लगभग १० बजे सभी श्रावकों के चले जाने के बाद आचार्य प्रवर ने फरमाया “स्फुरणा आ रही है तू अंधेरे में लिख सकेगा क्या? मैं तुरंत हामी भरते हुए कागज कलम लेकर लिखने बैठ गया।
उस निविड़ अंधकार में लिखने से कोई अक्षर ऊपर जाता तो कोई नीचे, पंक्तियां टेढ़ी मेढ़ी हो जाती। इसी तरह लगभग कई पृष्ठ गुरुदेव ने लिखवाए। यह क्रम ४-५ दिन चलता रहा। रात्रि में पृष्ठ लिखना, सुबह तैयार करके गुरुदेव के चरणों में प्रस्तुत करना होता था।
यह गुरुदेव की ही कृपा दृष्टि थी, जिससे मेरे अन्तर्मन में एक दिव्य चेतना का प्रस्फुटन हुआ और यह कार्य सफलता के साथ सम्पन्न हुआ। आज भी वे पृष्ठ मेरे पास सुरक्षित हैं। जब कभी उन्हें देखता हूँ तो आनंद की | अनुभूति होती है।