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मेरे जीवन-निर्माता
___ पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. परिस्थितियों को पहचानने में पारंगत थे। अतल तल में पहुंचने
डॉ. मंजुला बम्ब की शक्ति आप में विद्यमान थी। व्यक्ति का चेहरा देखकर उसके मनोगत भावों को जानने में निपुण थे । गुरुदेव देख लेते थे कि इस व्यक्ति के जीवन को सुदृढ बनाने के लिए किस प्रकार के उपचार की आवश्यकता है। मेरे जीवन का निर्माण करने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
सन् १९७५ में मेरे जीवन में यकायक परिवर्तन आया। अचानक मेरे पति श्री हेमचन्द जी बम्ब १४ अगस्त १९७५ की रात्रि ११.३० बजे इस संसार से मुझको तीन बच्चों के साथ छोड़कर चले गए। इस वीरान जिन्दगी के | बारे में हमेशा सोचती रहती थी। अनेक प्रश्न उठते रहते थे। मैं १७ सितम्बर सन् १९७५ को पूज्य गुरुदेव के दर्शनों के लिए परिवारजनों के साथ ब्यावर गयी। तब गुरुदेव ने मुझको रोते हुए देखकर समझाते हुए कहा था “यदि व्यक्ति अपने गुणों का विकास करेगा तो उसकी जीवन- यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न होगी। गुणों की वृद्धि का कहीं अहंभाव जाग्रत नहीं हो जावे, इसके लिए व्यक्ति को महापुरुषों के चरणों में स्वयं को अर्पित करना चाहिए।” ।
यही वाक्य हमेशा मेरे कानों में गूंजते रहते थे। उस समय स्वाध्याय की प्रवृत्ति मुझमें नहीं होने से मैं धार्मिक अनुष्ठानों से बिल्कुल अनभिज्ञ थी। अज्ञानता के कारण कई प्रश्न मेरे मन में कौतूहल उत्पन्न करते थे और मैं हमेशा उन प्रश्नों को लिखकर रख लेती थी। मैं जब भी गुरुदेव के दर्शनों के लिए जाती, वे प्रश्न अपने साथ लेकर जाती कि अनुकूल अवसर मिलने पर गुरुदेव से पूछूगी। मगर मेरे सभी प्रश्नों का समाधान व्याख्यान में ही हो जाता था। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता था कि हर समय ही मेरे प्रश्नों का समाधान मेरे बिना पूछे कैसे हो जाता है।
दोपहर की मौन-साधना के बाद जब मैं आचार्यप्रवर की सेवा में बैठती तब मुझसे गुरुदेव पूछते कि 'मन में जो कोई प्रश्न है वह पूछ। मैं चुप रहती, फिर “पूछ बाई पूछ। मंजू पूछ।' मैं शर्म से और डर से बोलती ही नहीं थी। मैं सहमी-सहमी सी कह देती, नहीं बाबजी नहीं, कोई प्रश्न नहीं है। ऐसा मेरे जीवन में करीब आठ-दस बार हुआ। इसी तरह मेरे मन में शंकाएँ उठती रहतीं और पूज्य भगवन्त के दर्शनार्थ जाती तभी प्रवचन में ही सभी शंकाओं का समाधान मिल जाता। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता कि गुरुदेव को मेरे मन की बातें एक्सरे मशीन की भांति कैसे पता चलती हैं?
वाणी में ओज, प्रवचन में प्रखरता, उत्कृष्ट संयम-साधना के साथ सरलता आदि अनेक गुण आप में थे, जो चुम्बकीय शक्ति का कार्य करते थे। जो भी एक बार गुरुदेव के समीप बैठ जाता उसकी वहाँ से जाने की इच्छा नहीं होती थी। ऐसा लगता था कि आपका सौम्य चेहरा अपलक निहारते रहें। इससे नयन तो पवित्र होते ही थे, मन भी पुलकित रहता था। गुरुदेव से आत्मिक-शक्ति मिलती थी। दर्शन करके वापिस जयपुर लौटती तो बहुत ही रोना आता था। आप श्री के वात्सल्य और चुम्बकीय-शक्ति से मैं बहुत प्रभावित हुई। मेरे नीरस, वीरान जीवन में उन्होंने मुझे कभी भी व्रत-नियम के लिए नहीं कहा। मुझे हमेशा जीवन-लक्ष्य की प्रेरणा प्रदान करते।
आपश्री ने अपना सम्पूर्ण जीवन स्व-पर कल्याण में ही समर्पित किया। इसी कारण आपश्री के सम्पर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति खाली नहीं लौटता था। सामायिक, स्वाध्याय, ध्यान, मौन, नैतिक उत्थान, कुव्यसन-त्याग