________________
[ तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
५६५ अपार प्रसन्नता हो रही थी। तभी मेरे मन में विचार आया कि जब तक पूज्य आचार्य भगवन्त के चरण अपने घर पर नहीं पड़ते, तब तक जीवन पर्यन्त चावल का त्याग कर दिया जाय। धर्मपत्नी सहर्ष सहमत हो गई और हम दोनों ने चावल का उपयोग करना बन्द कर दिया। इन्दौर चातुर्मास के पश्चात् आचार्य श्री के उज्जैन पधारने पर हमारा स्वप्न साकार हुआ।
(४) पूज्य आचार्य भगवन्त का विहार भीलवाडा से मालवा की तरफ प्रारम्भ हुआ। चित्तौड़गढ़, नीमच होते हुये मन्दसौर पधारे। मन्दसौर में श्री महावीर प्रसाद जी की दीक्षा सानन्द सम्पन्न हुई और पू. गुरुदेव ने उनका नाम नन्दीषेण मुनि रखा। वहाँ से विहार कर जावरा होते हुये रतलाम पधारे । रतलाम में सम्प्रदायवाद अधिक है, किन्तु पूज्य आचार्य भगवन्त के प्रवचनों में तीनों सम्प्रदायों के श्रावक-श्राविका हजारों की संख्या में उपस्थित हुए. ऐसा दृश्य तीनों सम्प्रदायों के श्रावकों की उपस्थिति का न पूर्व में कभी देखा और न उसके पश्चात् आज तक देखने को | मिला।
(५) पूज्य आचार्य भगवन्त इन्दौर जानकी नगर स्थित जैन भवन में विराजमान थे। उन दिनों मैंने स्वप्न देखा कि पूज्य आचार्य भगवन्त विराजमान हैं। मैंने पूज्य आचार्य भगवन्त से निवेदन किया कि बड़े भाई सा श्री बाबूलाल जी चौरड़िया को चौथे व्रत के आजीवन त्याग करा दीजिये। इस पर पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि चौथे एवं पाँचवे व्रत के त्याग करा दो। उस वक्त बडे भाई सा की तबीयत खराब चल रही थी। अशक्तता ज्यादा थी। प्रात: काल मैंने बड़े भाई साहब से कहा कि पूज्य आचार्य भगवन्त ने आपको चौथे व पाँचवें व्रत के त्याग कराये हैं , ऐसा मैंने स्वप्न देखा है। अत: आपका मन हो तो त्याग कर दीजिये।
इस पर बड़े भाई सा ने स्वीकृति दे दी, मैं तुरन्त उज्जैन विराजित तपस्वी लालचन्दजी म. श्री कान मुनिजी म.सा. एवं श्री गुलाब मुनि जी म.सा. के पास गया और कहा कि भाई सा को चौथे व पाँचवे व्रत के त्याग करना है अत: आप घर पर पधारें और उन्हें त्याग करा देवें। श्री गुलाब मुनिजी म.सा. घर पधारे और स्वप्न अनुसार उन्हें चौथे | एवं पाचवें व्रत के पच्चखाण कराये।
दोपहर में मैं पूज्य आचार्य भगवन्त के दर्शनों के लिये इन्दौर गया और निवेदन किया कि भगवन्त आपने जो मुझे निर्देश दिया उसका मैंने पालन कर दिया है। पूज्य आचार्य भगवन्त एक मिनिट सोचने लगे फिर कहा कि कैसा निर्देश ? मैंने कहा कि आपने मुझे स्वप्न में बड़े भाई सा को चौथे एवं पाँचवे व्रत के पच्चक्खाण कराने के लिये कहा था। भाई सा की तबीयत खराब होने के कारण इन्दौर नहीं ला सकते थे। अत: श्री गुलाब मुनि जी म.सा. से | उन्हें पच्चक्खाण करवा दिये हैं।
उस समय श्री कन्हैयालालजी लोढा (जयपुर) वहाँ पर सामायिक में बैठे थे। पूज्य आचार्य भगवन्त ने उनको | संबोधन करते हुये कहा कि “सुनो श्रावक जी ! थांने रूबरू केवां तो भी थे कहणो नी मानो ? इनके स्वप्न में भी | कह देवां तो ये केणो कर लेवे।"
-व्ही. पारस भय्या, पुराना कैलाश टाकीज के सामने, उज्जैन (म.प्र.) ४५६००६