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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
गुरु महाराज नित्यकर्म के लिए बाहर पधारते थे तो पीछे मैं अपने आपको उनकी नित्यलिखित डायरी पढ़ने से रोक नहीं पाता था। एक दिन अचानक ही गुरु महाराज तुरन्त पधार गये, मेरे हाथ में डायरी थी और मैं पढ़ रहा था सो उन्होंने देख लिया। फरमाया - चोरी करनी कब से सीख ली ? मैंने कहा - मैं तो खाली डायरी पढ़ रहा था, उसमें से कुछ पन्ने वगैरह तो नहीं निकाले फिर चोरी कैसे हुई ? फरमाया - बिना इजाजत के किसी की डायरी, लिफाफा, पत्र, कार्ड पढ़ना चोरी है। इसमें तीसरे व्रत का दोष लगता है, यह हमेशा ध्यान में रखना। मैं तो डर रहा था कि आज गुरु महाराज कितने नाराज होंगे, एक तरह से कांप ही रहा था। चोरी करने वाले के पांव कच्चे। पर उन्होंने इतने धीरज से समझाया कि आज मैं कभी ऐसी चेष्टा भी नहीं करता। यहाँ तक कि किसी की किताब पड़ी हो तो उसे पूछकर लेता हूँ।
-जे.जे. एग्रो इण्डस्ट्रीज, एम.आई.डी.सी.
जलगांव (महा.)