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गुरु-समागम से जीवन में परिवर्तन
. श्री ताराचन्द सिंघवी | मेरा जन्म हैदराबाद में हुआ। बचपन वहाँ ही बीता। आज भी मेरे बड़े भाई साहब श्री जैन रन हितैषी श्रावक संघ हैदराबाद के अध्यक्ष हैं। लगभग १५ वर्ष की अवस्था में पाली आया। वैसे मूलत: हमारा परिवार पाली का ही था। धर्म पर मेरी आस्था बचपन से थी, परन्तु मुझे यह ज्ञात नहीं था कि मेरे गुरु कौन हैं । संयोग से बाबाजी सुजानमल जी म.सा.का पाली पधारना हुआ। मैं पाली में अपनी बहिन के पास रहता था। उन्होंने मुझे बताया कि तेरे गुरुदेव आए हैं। बाबाजी म.सा. की वाणी का प्रभाव मेरे पर इस कदर पड़ा कि मैंने उनसे पूछा - "गुरुदेव ! आचार्य श्री के दर्शन कब होंगे? आप ही मुझे गुरु आम्नाय करा दें।" बाबाजी म.सा. ने गुरु आम्नाय करवायी और कहा कि तुम्हारे देव 'अरिहंत ' गुरु 'निर्ग्रन्थ' और धर्म ‘दयामय' है। आज से तेरे धर्म गुरु रत्नवंश के शासन प्रभावक आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. हैं। तब से मेरे मन में उनके दर्शन की उत्कट अभिलाषा उत्पन्न हो गयी। संयोग से कुछ समय व्यतीत होने पर श्रद्धेय आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमल जी म.सा. का चातुर्मास पाली में हुआ। उनके दर्शन कर मैं आनन्दित हो गया । मेरे मन में ऐसे भाव जगे कि मैं गुरुदेव के दर्शन करता ही रहूँ। मैंने चातुर्मास में सेवा भी खूब की। किन्तु मैं थोड़ा उग्र स्वभावी था। आचार्य भगवन्त के तेज का मुझ पर प्रभाव पड़ा। चातुर्मास में सात दिनों तक शान्ति जाप चला, तब रात्रि में जाप को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी। उन दिनों लगभग रात भर जगना पड़ता था। उस समय मैंने देखा कि पूज्य गुरुदेव एक नींद ही लेते हैं, जब जाग जाते, तब ही ध्यान में एक आसन से बैठकर चार-पांच घंटों तक ध्यान मग्न रहते हैं। मैंने सोचा इस युवावस्था में भी गुरुदेव को नींद नहीं आती क्या? मेरी जिज्ञासा बढ़ी, कई बार दयाव्रत का आराधन करते समय रात्रि में मैं स्थानक में सोया, तब मैंने फिर देखा कि गुरुदेव एक नींद से जब भी जगते तो ध्यान में आरूढ हो जाते। ऐसा संत मैंने कभी देखा नहीं, जिसमें तनिक भी आलस्य नहीं , इधर-उधर की पंचायती नहीं और दिनभर लेखन कार्य करता रहे। मैं सोचता, क्या गुरुदेव को थकावट नहीं आती है?
जैसे-जैसे गुरुदेव के सम्बन्ध में मेरी जानकारी बढ़ती रही वैसे-वैसे मेरी धर्म-श्रद्धा सबल होती गई। गुरुदेव के प्रति मेरा आकर्षण बढ़ता गया। प्रतिवर्ष दर्शन करने जाता तो गुरुदेव पूछते, धर्मध्यान चल रहा है? आगे क्या बढ़ाना है? कहते - “लाला धर्म क्षेत्र में आगे बढ़ो। " मेरे भाग्य में धर्म-ध्यान तो विशेष नहीं बढ़ पाया, परन्तु गुरुदेव और धर्म पर श्रद्धा बढ़ती रही । समाज सेवा में मैंने अवश्य अधिक भाग लिया जो निरन्तर चलता रहा। सामाजिक क्षेत्र में मेरे जीवन में अनेक बार उतार-चढ़ाव आए परन्तु मैंने पीछे हटने का कभी भी नहीं सोचा। गुरुदेव के आशीर्वाद से मैं समाज-सेवा और संघ-सेवा में निरन्तर लगा रहा। मेरे कई साथी, युवक और बच्चे मुझे 'गुरुजी | के नाम से संबोधित करने लगे।
___ एक बार गुरुभगवन्त ने भी कहा - 'गुरुजी' मारे सूं थारे चेला घणा है' मैंने कहा - "भगवन्, जब मैं ही आपका चेला हूँ तो मेरे चेले किसके चेले हैं, आपके ही तो हैं।"
आचार्य भगवन्त के मद्रास चातुर्मास में हम दोनों दर्शन हेतु गए। गुरुदेव ने पूछा - "क्या नियम लेने आए || हो?” मैंने कहा-“भगवन् हम शीलवत अंगीकार करना चाहते हैं।" गुरुदेव ने पूछा - “पकावट है?” मैंने कहा -