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प्रथम खण्ड
जीवनीखण्ड
प्रस्तुत खण्ड में अध्यात्मयोगी, उच्चकोटि के तेजस्वी साधक, युगमनीषी, युगशास्ता आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. के जीवनवृत्त को अथ से इति तक लिपिबद्ध करने का प्रयास किया गया है। प्रथम अध्याय 'तेणं कालेणं तेण समएणं' भूमिका रूप है, जिसमें भगवान महावीर के शासन एवं स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय में रत्नसंघ-परम्परा का संक्षिप्त वर्णन है। दूसरे अध्याय से पच्चीसवें अध्याय में चरितनायक के जन्म, बाल्य प्रतिभा, वैराग्य, प्रव्रज्या, मुनि-जीवन, तलस्पर्शी अध्ययन, आचार्य पद हेतु मनोनयन, आचार्य पद-आरोहण, विचरण-विहार, चातुर्मास, महाप्रयाण आदिका क्रमिक निरूपण है।
आशा है यह खण्ड चरितनायक के साधक जीवन के विकास सूत्रों को समझने और संघ, समाज एवं मानवजाति को उनके योगदान का आकलन करने में सहायक सिद्ध होगा। उससे भी महत्वपूर्ण है-पाठक को अपने जीवन का निर्माण करने की प्रेरणा एवं तदनुरूप गति-प्रगति में यह जीवनवृत्त सहायक सिद्ध हो सकेगा।